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सूरदास जी को दिव्य दृष्टि क्या श्रीकृष्ण ने दी? आइए पढ़ते हैं उनके भक्तिमय दोहे

Myjyotish expert Updated 18 May 2021 02:33 PM IST
Astrology
Astrology - फोटो : Google
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 महाकवि सूरदास कृष्ण भक्त कवियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। उनकी भक्तिभावना सभी भक्त कवियों में सर्वाधिक प्रखर है। उनका भक्ति संबंधी दृष्टिकोण स्थिर न होकर गतिशील रहा है। दास्य भक्ति से आरंभ करके वह  अंततः रागानुगा भक्ति तक पहुंचे। वल्लभाचार्य 'शुद्धद्वैतवाद'  दर्शन एवं 'पुष्टिमार्ग'  में निष्ठा रखते हुए उन्होंने अपनी भक्ति भावना को सूरसागर में बेहद मार्मिक और मनोरम दृश्य खींचा है।

 सूरदास जी ने ब्रजभाषा में श्री कृष्ण की लीलाओं को बहुत ही सुंदर रूप में उकेरा है। सूरदास जी की पंक्तियों में भक्ति रस तथा श्रृंगार रस का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। 

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण भक्त सूरदास जी का जन्म मथुरा के रुनकता गांव में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई. में हुआ था। ऐसे में इस वर्ष सूरदास जयंती आज 17 मई 2021 को मनाई जा रही है। वे जन्म से ही दृष्टिहीन थे, आइए सूरदास जी की कुछ पंक्तियों को  पढ़ते हैं।

• "मोरी मैं नही माखन खायौ ।
भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो ।।"
• "मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो ।।"
• "तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो ।।"
• "यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो ।।"

• "उधो भली करी तुम आए 
वे बातें कहि कहि या दुःख मैं ब्रज के लोग हंसाए।।"

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• "निरगुन कौन देस को वासी ।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।"
• "को है जनक ,कौन है जननि ,कौन नारि कौन दासी ।
कैसे बरन भेष है कैसो ,किहं रस में अभिलासी ।।"
• "पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी ।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी ।।"

" अब अति पंगु भयो मन मेरो।
 गयो तहाँ निर्गुण  कहिवे को भयो सगुण को चेरो।।"

• " उधो कोकिल कुजत कानन।
 तुम हमको उपदेस करत हौ भस्म लगावत आनन।।"

• "बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी ।।"

• "काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी ।।"

• "सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी ।।"

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