क्या है मंदिर के पीछे की मान्यता:
यह मंदिर श्मशान घाट में महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बनाया गया है। जो दरभंगा राज दरबार के साधक राजाओं में से एक थे। जिसके कारण इस मंदिर को रामेश्वरी श्यामा माई भी कहते है। मंदिर की स्थापना 1933 में महाराज कामेश्वर सिंह ने की थी। गर्भगृह में माँ काली की विशाल प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा के दाहिनी ओर महाकाल और बाईं ओर गणपति एवं बटुकभैरव देव की प्रतिमा स्थापित है। जिसके पावन दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। और अगर भक्त अपनी नम आंखों से माँ काली से कुछ मांगते हैं तो उनकी मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती है।
माँ के गले में जो मुंड माला है उसमें हिंदी वर्णमाला के अक्षरों के बराबर मुंड हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हिंदी वर्णमाला सृष्टि का प्रतीक हैं। मंदिर में होने वाली आरती का भी विशेष महत्व है। जिसके लिए भक्तजन घंटों घंटों माँ के दरबार में प्रवेश करने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं। जो एक बार इस भव्य आरती का गवाह बन गया उसके जीवन से सारा अंधकार दूर हो जाता है।
मंदिर में माँ काली की पूजा दोनों वैदिक और तांत्रिक विधि विधानों के साथ पूरी की जाती है। मंदिर में प्रार्थना स्थल के मंडप की दीवारों पर सूर्य , चंद्रमा , और अन्य नक्षत्रों सहित कई और तांत्रिक यंत्र बने हैं। मान्यताओं के अनुसार श्यामा माई माता सिता का ही रूप हैं। जो भक्तजनों के जीवन से सभी कष्ट और अंधकार दूर कर देती हैं।
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खास है ये बातें:
- इस मंदिर के भीतर दक्षिण दिशा की ओर एक खास स्थान है, जहां पर आज भी लोग साधक महाराज रामेश्वर सिंह की चिता की तपस को महसूस करते हैं। चाहे आस पास यहां कड़ाके की ठंड ही क्यों न पड़ रही हो।
- आमतौर पर हिंदू धर्म में शादी के एक साल बाद तक नवविवाहित जोड़ा श्मशान भूमि में नहीं जाता है, लेकिन श्मशान भूमि पर बने इस प्राचीन मंदिर में न केवल नवविवाहित जोड़े आशीर्वाद लेने आते हैं, बल्कि इस मंदिर में शादियां भी सम्पन्न कराई जाती हैं। इसके अलावा मुंडन जैसे शुभ कार्य भी होते हैं।
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