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भक्तों को प्रसाद में रक्त से सना गिला कपड़ा मिलता हैं, देवी के इस चमत्कारी मंदिर में

myjyotish expert Updated 29 May 2021 07:43 PM IST
भक्तों को प्रसाद में रक्त से सना गिला कपड़ा मिलता हैं, देवी के इस चमत्कारी मंदिर में
भक्तों को प्रसाद में रक्त से सना गिला कपड़ा मिलता हैं, देवी के इस चमत्कारी मंदिर में - फोटो : google
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भारत में कई प्रसिद्ध चमत्कारी और रहस्यमय मंदिर मौजूद हैं। ऐसे ही प्राचीन चमत्कारी मंदिरों में से एक हैं कामाख्या मंदिर। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं माता सति को समर्पित यह अनोखा मंदिर। माता सति के प्रचलित 51 शक्तिपीठों में से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं यह मंदिर। इस महापीठ में माता सति की योनि और गर्भ गिरा था। इसलिए निलाचंल पर्वत पर 17वीं सदी में बिहार के राजा नारा नारायणा नें देवी का यह पवित्र मंदिर बनवाया। इस मंदिर का नाम कामाख्या इसलिए हैं क्योकि यह देवी दुर्गा का ही दूसरा नाम हैं। इसके अतिरिक्त यह मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता हैं।

क्या महत्व है इस स्थान का-

कथाओं के अनुसार जब शिव मोह में माता सति ने उनसे शादी करली थी, तो सति के पिता राजा दक्ष इस शादी से खुश नहीं थे। एक बार जब राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होने शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से माता सति क्रोधित होकर बिना बुलाए ही अपने पिता के घर चली गई। जहां पर राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया, सति यह सुन नहीं पाई और अपने आप को हवन कुंड की अग्नि में झोक दिया। भगवान शिव को जब यह पता चला तब उन्होने वहां पहुँचकर सति माता के जलते शव को गोदी में उठाया और लेकर तांडव करने लगे। उन्हें रोकने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र फेंका, जिससे माता का शव 51 हिस्सों में कट गया और पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर जा गिरा। इस स्थान पर माता की योनि और गर्भ गिरा था।

क्यों अनोखा हैं यह मंदिर-

हिंदु धर्म में देवी-देवताओं की प्रतिमा को पूजा जाता हैं, मगर इस दिव्य मंदिर की अनोखी बात यह हैं कि यहां के गर्भग्रह में  देवी दुर्गा या अम्बे माता की कोई प्रतिमा या चित्र मौजूद नहीं हैं। बल्कि मंदिर में माता भगवती की महामुद्रा यानि योनि कुंड स्थित हैं जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता हैं। खास बात यह हैं कि इस कुंड में से हमेशा ही जल निकलता रहता हैं और योनि रूप में बने इस कुंड को ही पूजा जाता हैं।  इस मंदिर में पशुओं की बली देने का भी खुब चलन हैं। लेकिन यहां किसी भी मादा जानवर की बलि नहीं दी जाती हैं।

अधिक जानने के लिए हमारे ज्योतिषियों से संपर्क करें

क्यों प्रसाद में मिलता हैं रक्त से सना कपड़ा-

विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों के लिए वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व एक वरदान है। जो जून माह में आषाढ़ की तिथि के अनुसार मनाते हैं। यह पर्व सति का सजस्वला पर्व होता हैं, जिसमें तीन दिन के लिए देवी मासिक धर्म चक्र से गुज़रती हैं। और तीन दिन के लिए मंदिर के पट बंद ही रहते हैं। हर साल इस पर्व के दौरान पास में स्थित ब्रह्रापुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता हैं। और गर्भग्रह में स्थित योनि कुंड से रक्त बहता हैं। कहा जाता हैं कि जब माँ को मासिक चक्र से गुज़र रही होती हैं तो एक सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता हैं, जो मंदिर के पट खुलने के बाद माँ के लाल रक्त से बीगा हुआ मिलता हैं।
इसी कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते  हैं जो पर्व में सम्मेलित हुए भक्तों को प्रसाद के तौर पर दिया जाता हैं। 

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