कूष्माण्डा माता सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। माना जाता है कि कूष्माण्डा माता ही केवल एक ऐसी देवी है जो सूर्य लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति रखती है । कूष्माण्डा माता के शरीर की चमक और दिमाग की तेजी बिल्कुल सूर्य के समान मानी जाती है । कोई भी देवी-देवता कूष्माण्डा माता के तेज प्रभाव का मुकाबला नहीं कर सकते हैं । ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में आवश्यक तेज पर इन्हीं की छाया है ।
कूष्माण्डा माता की आठ भुजाएं है। इसलिए इन्हें अष्टभुजाधारी देवी भी कहा जाता है । इनके हाथों में कमंडलु, धनुष, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र, गदा, बाण एवं सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जपमाला है । कूष्माण्डा माता शेर पर सवार है । माता कूष्माण्डा को कुम्हड़े की बलि बहुत ही प्रिय होती है इसलिए इन्हें कूष्माण्डा माता कहा जाता है।
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नवरात्रि के समय कूष्माण्डा माता का पूजन चौथे दिन पर किया जाता है । माना जाता है कि इस दिन पूरे मन से माता कूष्माण्डा का पूजन करने से मन की सभी इच्छाएं पूरी होती है इसलिए इस दिन माता कूष्माण्डा की पूजा आराधना के कार्यों में ही लगे रहना चाहिए । माना जाता है कि माता कूष्माण्डा की पूजा आराधना करने से शरीर के सभी रोग खत्म हो जाते हैं। यदि व्यक्ति माता कूष्माण्डा कि पूरे मन से भक्ति करता है तो उसको आयु, यश, बल, और आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। माँ दुर्गा का कूष्माण्डा स्वरूप अत्यंत ही सुखद और सुगम माना जाता है। इन की पूजा करने से सुख और समृद्धि बनी रहती है।
माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि :
- नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा की जाती है | इस दिन हरे वस्त्र धारण करना चाहिए |
- सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ हरे रंग के वस्त्र धारण कर ले |
- उसके बाद माता कूष्माण्डा का कोई चित्र या मूर्ति घर के मंदिर में स्थापित करें और उस पर गंगाजल का छिड़काव करें |
- मूर्ति के सामने दीपक जलाकर तिलक लगाए और हरी इलायची और कुम्हड़े का भोग लगाए |
- उसके बाद पूरा मन लगाकर ‘ऊं कूष्मांडा देव्यै नम:' मंत्र का 108 बार जाप करें |
- माता की आरती उतारे उनकी कथा सुने और फिर कम से कम 1 ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाए |
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