बिना मुर्ति के होती है मंदिर में पूजा
कालीमठ मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। मंदिर के अंदर एक कुंडी बनी हुई है जिसकी भक्त पूजा करते है। यह कुंड रजतपट श्री यंत्र से ढका हुआ है। केवल पूरे साल में शारदा नावरात्री में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और बाहर लाया जाता है। उस कुंड की पूजा केवल मध्यरात्रि में की जाती है। पूजा के लिए केवल पूजारी ही मौजूद रहते है।
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कालीमठ मंदिर के कुछ रोचक तथ्य
कालीमंठ मंदिर विंध्याचल की मां कामख्या और जालंधर की ज्वाला मां के समान ध्यान और तंत्र के लिए अत्यंत ही उच्च कोटि का कहा जाता है।
मान्यता के अनुसार कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक माना जाता है। यह केवल ऐसी जगह जहां माता काली अपनी बहनों मां लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ स्थित है।
स्कंद पुराण में केदारखंड के 62 अध्याय में मां के इस मंदिर का वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। यहां मां काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था। इसके बाद देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित है। उत्तराखंड का ये वो शक्तिपीठ है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती।
कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है जिसे कालीशिला के नाम से जाना जाता है। यहां इस शिला में आज भी देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं। कालीशीला में देवी के 64 यन्त्र है। मां दुर्गा को इन्ही 64 यंत्रो से शक्ति मिली थी। कहा जाता है कि इस जगह पर 64 योगिनिया विचरण करती रहती हैं।
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