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ज्योतिषियों ने देव दीपावली को मनाने के पीछे कई कारण बताए हैं। आइए जानते हैं उन कारणों के बारे में:
1 .पुरानी मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दीपावली के दिन शिव भगवान ने असुर राक्षस त्रिपुरासुर का संहार किया था। यही कारण है कि भगवान शिव को त्रिपुरारी के रूप में भी पूजित किया जाता है। इस दिन देवताओं ने शिव भगवान की जीत का जश्न दीपावली मनाकर मनाया था। उसी समय से इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
2. मान्यता है कि देव दीपावली के दिन विष्णु भगवान ने अपना मतस्य अवतार लिया था।
3. ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण का आत्मबोध हुआ था।
4. मान्यता है कि इस दिन देवी तुलसी जी प्रकट हुई थीं।
5. कहा जाता है कि देव उठनी एकादशी के दिन समस्त देवता 4 महीने की निंद्रा के बाद जागृत होते हैं और फिर कार्तिक पूर्णिमा के दिन यमुना तट पर जाकर स्नान करते हैं। कहते हैं कि समस्त देवता यमुना घाट पर स्नान करके वहीं पर दीपावली मनाते हैं। इसी वजह से इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है।
6. ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदित्य और अंगिरा आदि द्वारा कार्तिक पूर्णिमा को महापुनित पर्व प्रमाणित किया गया है।
7. कार्तिक पूर्णिमा या देव दीपावली के दिन सिख धर्म की स्थापना करने वाले उनके गुरु गुरुनानक देवजी महाराज का जन्म हुआ था।
क्या है देव दीपावली का महत्व?
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था जिसके तीन पुत्र थे जिनके नाम तारकक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष था। इन तीनों राक्षसों ने भारी तपस्या करके ब्रह्मा जी से अमरता का आशीर्वाद मांगा था। अमरता का आशीर्वाद इस सृष्टि के नियमों के खिलाफ था, इसीलिए ब्रह्मा ने उन्हें इस आशीर्वाद के बदले कोई दूसरा वरदान दे दिया। उस वरदान के अनुसार ब्रह्मा ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो लोग तब तक नहीं मरेंगे जब तक उन्हें कोई तीर से नहीं मार देता।इस वरदान को पाने के बाद तीनों राक्षसों ने पृथ्वी लोक पर तबाही मचा दी और मानव जाति के लिए विनाशकारी साबित हुए। इसीलिए इन तीनों राक्षसों का अंत करने के लिए भगवान शिव ने त्रिपुरारी का रूप धारण किया और तीनों राक्षसों को एक ही तीर से मार गिराया। इस तरह से शिव जी ने वापस से सृष्टि में शांति की स्थापना की जिसकी खुशी में देव दीपावली मनाई जाती है।देव दीपावली का त्योहार खासकर वाराणसी और अयोध्या जैसे पवित्र शहरों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त और श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं। फिर शाम में घाटों और घरों में तेल के दीए जलाए जाते हैं।
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