पूरे भारत में दीपावली सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। दीपावली को एकता का त्यौहार भी कहा जाता है। इसे सिख बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी हर्षोल्लास से मनाते हैं।दीपावली के उत्सव में पहले दिन धनतेरस का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्यौहार को धनतेरस इसलिए कहा जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी एवं कुबेर की पूजा की जाती है और इस दिन बर्तन सोना चांदी वाहन अथवा कोई नई वस्तु वस्त्र खरीद कर अपने घर में लाते हैं और उसकी पूजा अर्चना करते हैं।
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दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं।
दीप प्रज्वलन के समय इस मंत्र का स्मरण करें :
दीप दर्शन
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।।
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।
दिवाली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।
पुुराणों में जहां दिवाली का वर्णन है वहां यह नया तथ्य भी सामने आता है कि दीपावली के दिन सिर्फ महालक्ष्मी के लिए ही नहीं बल्कि पितरों के निमित्त भी दीप जलाए जाते हैं।
दीपक के साथ आतिशबाजी, आकाशदीप, कंडील आदि जलाने की प्रथा के पीछे यह धारणा है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरंभ होती है।
हमारे पितर कहीं मार्ग से भटक न जाएंं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।
यूं तो दीपावली के कई मायने हैं। दीपों के इस त्योहार के दिन रोशनी का विशेष महत्व होता है। भारत के हर धार्मिक त्योहार की तरह इस त्योहार के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं है। यह हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कोई भी पर्व किसी खास जाति या धर्म तक तो सीमित रह ही नहीं सकता।
आज दीपावली भारत में रहने वाले हर इंसान के लिए एक अहम त्योहार है। प्रकाश और उल्लास का पर्व दीपावली पूरे भारत के अलग-अलग समुदायों में भिन्न-भिन्न कारणों से मनाया जाता है। दीपावली मनाते तो सभी हैं लेकिन सभी में दीपक जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां प्रचलित हैं।
•बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी।
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