त्यौहार के पहले दिन, नहाय खाए होता है जिसमें भक्त सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं और बाद में अपने लिए भोजन बनाते हैं। जो आम भोजन तैयार किया जाता है वह चना दाल के साथ कद्दू भात होता है जिसे मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी का उपयोग करके कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है। जो महिलाएं उपवास रखती हैं, वे दिन भर में केवल एक बार भोजन करती हैं।
घर की पूरी साफ-सफाई करें | सुबह नदी, तालाब, कुएं में नहाकर शुद्ध और साफ वस्त्र पहनें। घर के पास गंगा जी हों तो नहाय-खाए के दिन गंगा स्नान जरूर करें | व्रती महिला चने की दाल और लौकी की सब्जी शुद्ध घी में बनाती है , उसमें शुद्ध सेंधा नमक डाला जाता है | बासमती शुद्ध अरवा चावल बनाया जाता है |गणेश जी और सूर्य को भोग लगाकर व्रती इस भोजन का सेवन करती है | घर के सभी सदस्य भी यही खाते हैं | घर का कोई सदस्य मांस-मदिरा का सेवन नहीं कर सकता | रात को घर के सदस्य पूड़ी-सब्जी खाकर सो जाते हैं | व्रत रखने वाली महिला जमीन पर सोती हैं |
नहाय - खाए के दिन क्या करें क्या नहीं
- नहाय खाए के दिन व्रती को गंदे कपड़े कभी भी नहीं धारण करने चाहिए |
- नहाय खाए से छठ समाप्त होने तक व्रती महिला को जमीन पर ही सोना चाहिए | बिस्तर पर विश्राम करना शुभ नहीं माना जाता है |
- घर में भूलकर भी मांस-मदिरा और तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना होता है | पूजा की वस्तु का गंदा होना अच्छा नहीं माना जाता इसलिए साफ सफाई जरूर रखें |
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