छठ पूजा को बिहार में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन अब यह त्योहार बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश विदेश में भी मनाया जाता है। छठ पूजा में लोगों की बहुत ही मान्यता होती है। इस में सूर्य देव की उपासना की जाती है।
हर साल छठ पूजा को दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र के महीने में जब नवरात्रि का महत्व होता है और दूसरी बार कार्तिक के महीने में यानी की अक्टूबर-नवंबर दीवासी के छह दिन बाद मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, छठी मईया सूर्य देव की बहन है इसलिए माना जाता है कि सूर्य देव की उपासना करने से छठी मैया प्रसन्न होती है और इस दौरान सूर्य भगवान को अर्घ्य देने से घर में सुख-शांति और आर्थिक संपन्नता आती है।
चैत्र छठ महापर्व 16 अप्रैल यानी कि आज शुक्रवार से शुरू हो गई है। जोकि चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा है जिसमें लोग चतुर्थी तिथि से नहाय खाय के साथ मनाया जाता है।
चैत्र महीने में छठ पूजा-
नहाया-खाया 16 अप्रैल को- इस दिन लोग अपने घरों में साफ-सफाई करते है और शुद्ध जल से नहा के व्रत का संकल्प करते है। जो इस दिन व्रत रखता है वह चावल, चने की दाल और लौकी की सब्जी खाते है। इसी के साथ इस दिन को नहाया खाया कहां जाता है।
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खरना 17 अप्रैल को - इस दिन महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक निर्जला व्रत रखते है और फिर शाम में मिट्टी के चूल्हे पर बनी दूध और गुड़ से बनी खीर बनाकर, भगवान को भोग लगाते है और उसके बाद खुद खाते है। चांद नजर आने तक पानी पीते है और फिर 36 घंटे तक निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
अर्घ्य 18 अप्रैल शाम को - जब शाम को सूर्य देव अस्त हो रहे होते है, तब अर्घ्य सूर्य को दिया जाता है। नदी या तालाबों के किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते है। लेकिन इस साल कोरोने महामारी के कारण देश में पाबंदिया लगा दी गई है जिससे लोगों को घाट पर जाने से रोका जा सके और कोरोना को भी फैलने से रोका जा सकें।
चैती छठ समापन 19 अप्रैल को- महिलाएं पहले ही इस दिन नदी या तालाबों में खड़ी हो जाती है और सूर्य भगवान की पूजा करती है। सूर्य उगते ही अर्घ्य देकर व्रत को संपन्न किया जाता है।
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