ग्रहण के बाद स्नान(गंगा स्नान उत्तम) करके खाद्य वस्तुओं में डाले गये कुश एवं तुलसी को निकाल देना चाहिए।
सूर्य या चन्द्र जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
गर्भवती माताओं - बहनों के लिए ग्रहणकाल में विशेष ध्यान रखने योग्य आवश्यक बातें।
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गर्भिणी बालों पर लगी पिन या नकली गहने भी उतार दें ।
ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें।ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पैन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करे क्योंकि इससे शिशु के होंठ कटने की सम्भावना होती है।
सूई का उपयोग अत्यंत हानिकारक है , इससे शिशु के हृदय में छिद्र हो जाता है । किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुंडी आदि को स्पर्श न करें , न खोले और न ही बंद करें ।
ग्रहणकाल में सिलाई , बुनाई , सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना हानिकारक है।
ग्रहणकाल में पानी पीने से गर्भवती स्त्री के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है, जिस कारण बालक की त्वचा सूख जाती है।
गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक सूखा हुआ छोटा नारियल (श्रीफल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर दे।
सूर्य ग्रहण के अवसर पर कराएं सामूहिक महामृत्युंजय मंत्रों का जाप - महामृत्युंजय मंदिर , वाराणसी
ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें । देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरूमिट्टी का लेप करें अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें । इससे ग्रहणकाल के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है।
ग्रहण काल में दान बहुत महत्व है ,कोशिश करके दान अवश्य करे।
राशि अनुसार निम्न वस्तुओं का दान कर सकते है।
मेष और वृश्चिक – गुड़ ,और लाल मसूर या सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) का दान करें।
वृष और तुला - स्वेत वस्त्र एवं इसी रंग की मिठाई दान करें।
मिथुन और कन्या - हरे रंग का कंबल , साबूत मूंग की दाल का दान करें।
कर्क - साबुत चावल दान करें।
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सिंह - लाल मसूर गुड़ और ऊनी वस्त्र का दान करें।
धनु और मीन चने की दाल एवं पीले रंग का वस्त्र दान करें।
मकर और कुंभ - उड़द की दाल, काले रंग का कंबल , और सरसों का तेल दान करें।
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