यह दोष सूर्य से मिलने वाले सभी शुभ फलों में कमी करता है, एवं जिस स्थान पर यह योग बनता है उस स्थान के फल में भी कमी करता है।
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यह योग लग्न में बनता है तो व्यक्ति की बुद्धि को दूषित करता है एवं मानसिक समस्या प्रदान करता है।
यदि यह द्वितीय भाव में बने तो व्यक्ति कंजूस एवं अधिक धन संग्रहित ना कर सके।
यदि यह तृतीय भाव में बने तो छोटे भाइयों से कलह कराएं।
सूर्य ग्रहण के अवसर पर कराएं सामूहिक महामृत्युंजय मंत्रों का जाप - महामृत्युंजय मंदिर , वाराणसी
चतुर्थ भाव में बने तो माता को कष्ट व घर से दूर करें। पंचम भाव में बने तो पेट में रोग संतान सुख में कमी करें।
षष्ठ भाव में बनने पर शत्रुओं से भय व मामा पक्ष के सुख में कमी करें।
सप्तम भाव में बनने पर वैवाहिक जीवन में कलह उत्पन्न करें।
अष्टम भाव में बनने पर व्यक्ति व्यर्थ विवाद करने वाला एवं दो अर्थी बात करने वाला हो।
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नवम भाव में बनाने पर भाग्य में कमी करें एवं अपने अफसरों से ना बने।
दशम भाव में बनने पर व्यापार में उन्नति हो किंतु पिता से ना बने।
एकादश भाव में बनने से बड़े भाई से विरोध हो विद्या अध्ययन रुकावट के साथ पूर्ण हो।
द्वादश भाव में बने तो स्त्री से अनबन एवं ऋण ग्रस्त हो।
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