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वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक खगोलीय घटना मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण का प्रत्येक व्यक्ति के राशि पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण ग्रहण के बाद स्नान एवं दान करना बहुत अहम माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के 12 घंटे पहले ही सूतक काल प्रारम्भ हो जाता है जिसके कारण मंदिरों के पट भी बंद कर दिए जातें है।
सूर्य ग्रहण के अवसर पर कराएं सामूहिक महामृत्युंजय मंत्रों का जाप - महामृत्युंजय मंदिर , वाराणसी
सूर्य ग्रहण का व्यक्तिगत रूप में बहुत प्रभाव रहता है। सूर्य और चंद्र मनुष्य जीवन का महत्वपूर्ण भाग है। एक से व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान होती है तो वही दूसरा पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह के रूप में जाना जाता है। मत्सय पुराण के अनुसार ग्रहण का सम्बन्ध राहु और केतु के अमृत पान की कथा से बताया गया है। कथा के अनुसार स्वरभानु नामक राक्षस अपना रूप परिवर्तन करके सूर्य और चन्द्रमा के मध्य आकर बैठ गया था।
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जब दोनों देवताओं ने जाना की वह वास्तव में कौन है तो उन्होंने उसकी शिखायत नारायण भगवान विष्णु से की , कथन सुनते ही विष्णु जी ने अपने चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। जिसके कारण वह शीश राहु और धड़ केतु के नाम से जाने गए। उसी काल से जब कभी भी सूर्य और चन्द्रमा एक दूसरे के निकट आतें है तो संसार को ग्रहण की स्थिति दिखाई पड़ती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूतक यानि ग्रहण काल में बहुत सी सावधानियों को बरतना पड़ता है। जैसे की ग्रहण काल के समय तेल लगाना , भोजन करना , जल पीना , मल - मूत्र का त्याग करना आदि कार्यों की मनाई होती है।
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