एकादशी के दिन भक्त कठोर उपवास रखते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उपवास खोलते हैं। इस व्रत में किसी प्रकार का भोजन ग्रहण करना वर्जित होता है। श्रद्धालु इस व्रत को अपनी मनोशक्ति व शरीर के हिसाब से पानी के साथ, पानी के बिना, फल के साथ या एक समय सात्विक भोजन करके इस व्रत को संपन्न करते हैं। एकादशी का व्रत हर माह दो बार किया जाता है। पूर्णिमा से 11 तिथि कृष्णा पक्ष की एकादशी कहलाती है। यह व्रत पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन का आधार है।
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जो कोई व्यक्ति एकादशी का व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है उसे पुण्य मोक्ष व धर्म की प्राप्ति होती है। इस व्रत को लेकर मान्यता है की इस व्रत से मिलने वाला फल अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के समान होता है। जितना फल किसी को कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान - दान आदि से मिलता है उतना ही फल इस व्रत से भी प्राप्त होता है। यह व्रत, व्रताधारी का मन निर्मल करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व हृदय को शुद्ध करता है। उपासक सदैव सत्यता के मार्ग की ओर प्रेरित होता है तथा पूजा के पुण्य से उसके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सांसारिक जीवन में बहुत से ऐसे कार्य है जिनको करने की इस व्रत में मनाही होती है। इसलिए कहा जाता है की यदि कोई यह व्रत रखे वह सभी नियमों का ध्यान से पालन करें। जो समर्थ हो उन्हें व्रत करने की कोई मनाही नहीं होती है।
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