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जानिए क्यों फलदायी कहलाया कामदा एकादशी का व्रत

My Jyotish Expert Updated 03 Apr 2020 05:10 PM IST
Know why Kamada Ekadashi vrat is called fruitful
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पद्म पुराण में एक कथा के अनुसार एक बार पुण्यश्लोक धर्मराज युधिष्ठिर को लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया। उन्होंने बताया की इस व्रत से समस्त दुःखों की समाप्ति होती है , त्रिविध तापों से मुक्ति मिलती है। हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाले व्यक्ति के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म में इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यदि इस व्रत को नियमानुसार किया जाए तो सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा व्रत का भी पूरा फल प्राप्त होता है।


एकादशी के दिन भक्त कठोर उपवास रखते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उपवास खोलते हैं। इस व्रत में किसी प्रकार का भोजन ग्रहण करना वर्जित होता है। श्रद्धालु इस व्रत को अपनी मनोशक्ति व शरीर के हिसाब से पानी के साथ, पानी के बिना, फल के साथ या एक समय सात्विक भोजन करके इस व्रत को संपन्न करते हैं। एकादशी का व्रत हर माह दो बार किया जाता है। पूर्णिमा से 11 तिथि कृष्णा पक्ष की एकादशी कहलाती है। यह व्रत पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन का आधार है।

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जो कोई व्यक्ति एकादशी का व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है उसे पुण्य मोक्ष व धर्म की प्राप्ति होती है। इस व्रत को लेकर मान्यता है की इस व्रत से मिलने वाला फल अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के समान होता है। जितना फल किसी को कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान - दान आदि से मिलता है उतना ही फल इस व्रत से भी प्राप्त होता है। यह व्रत, व्रताधारी का मन निर्मल करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व हृदय को शुद्ध करता है। उपासक सदैव सत्यता के मार्ग की ओर प्रेरित होता है तथा पूजा के पुण्य से उसके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सांसारिक जीवन में बहुत से ऐसे कार्य है जिनको करने की इस व्रत में मनाही होती है। इसलिए कहा जाता है की यदि कोई यह व्रत रखे वह सभी नियमों का ध्यान से पालन करें। जो समर्थ हो उन्हें व्रत करने की कोई मनाही नहीं होती है।

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