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जाने व्यापर में साझेदारी के साथ क्यों जरुरी है ज्योतिष शास्त्र ?

आचार्य गिरीश राजौरिया Updated 18 Jun 2020 07:17 PM IST
व्यापर में साझेदारी के साथ जरुरी है ज्योतिष शास्त्र
व्यापर में साझेदारी के साथ जरुरी है ज्योतिष शास्त्र - फोटो : Myjyotish
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आज कल बड़े बड़े उद्योग और ,व्यवसाय को अधिक सफल बनाने के लिए  साझेदारी की आवश्यकता होती हैं साझेदारी के लिये एक अच्छे  पार्टनर का चुनाव करना होता है ।
 पार्टनर से कैसे लाभ मिलेगा , उसके साथ आपका व्यवहार कैसा रहेगा  इन सभी बातें के लिये आप अपनी  कुंडली के माध्यम से जान सकते हैं साझेदारी के लिए मुख्य भाव सप्तम भाव होता है जो हमारे व्यापार का भाव है साझेदार का भाव है व्यापार  मैं सफल होने के लिए  एक अच्छे पराक्रम की आवश्यकता होती है तृतीय भाव पराक्रम भाव होता है। जो जातक के  बल और पराक्रम को बढ़ाने का कार्य करता है । जन्म कुंडली का तृतीय भाव हमारे सहयोगी हमारे अधिनस्थ का भाव है जो  की कुंडली मे सहयोगी का भाव माना जाता है सहयोगी और साझेदार के द्वारा जातक के बल और पराक्रम को बढ़ाने का कार्य करते  है । साझेदारी व्यापार के लिए की जाती है इसलिए जन्म कुंडली में व्यापार का स्थान सप्तम भाव है ओर व्यापार करने के लिए कर्म व मेहनत करनी पड़ती है यानी कि पार्टनर आपके साथ कर्म करेगा कि नही  करेगा इस लिए जन्म कुंडली में दशम भाव कर्म भाव को भी महत्वपूर्ण माना गया है  और जो व्यापार करने जा रहे जिसके लिए मेहनत की आवश्यकता होगी  है जातक के पराक्रम और अधीनस्थ सहयोगी के द्वारा किए गए पराक्रम के द्वारा  जो लाभ प्राप्त होगा उसे कुंडली में एकादश भाव लाभ भाव से देखते हैं साझेदारी से प्राप्त होने वाला लाभ का भाव.एकादश भाव  होता है । जिससे आय और लाभ भाव कहते इनकम हाउस भी  कहते हैं ।

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अर्थात साझेदारी के लिए तृतीय भाव सप्तम भाव  दशम भाव और एकादश भाव से विचार करते हैं इन सब  भावों मे  शुभ ग्रहों की स्थिति होना अथवा इन भावों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि निक्षेपित होने से या इन भावो मे  ,बलवान ग्रह व अनुकूल दशा  अंतर्दशा विशेष महत्व रखती हैं ।                                  
** तृतीय भाव एवं  सप्तम भाव का  स्वामी कुंडली में नीच का  नही होना चाहिए  अन्यथा पार्टनर  व सहयोगी के द्वारा धोखा मिलता है तृतीय भाव व सप्तम भाव का स्वामी आपस में षष्टम अष्टम नहीं होना चाहिए  अथवा  द्वितीय  द्वादश नहीं होना चाहिए यदि ऐसा है  तब सहयोगी और पार्टनर जातक को धोखा देंगे अन्यथा आपके आपसी रिश्तेदार सगे संबंधी से व्यापार-व्यवसाय में धोखा मिलता है। तृतीय भाव का स्वामी उच्च का होकर एकादश भाव में हो  या सप्तम भाव में हो तो पार्टनर अच्छा होता है और सफलता भी मिलती है।      
** एकादश भाव का स्वामी बलवान होकर सप्तम भाव में हो और सप्तम भाव का स्वामी तृतीय भाव में हो तो जातक का पार्टनर उच्च वर्ग का.धनी होता है और सफलता भी प्राप्त करता है।       
* तृतीय भाव का स्वामी पार्टनर की कुंडली में नवम भाव में हो तो जातक की साझेदारी सफल होती है । नवम भाव का स्वामी तृतीय भाव में सप्तमेश के साथ हो और तृतीय भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो जातक की साझेदारी भाई के साथ या पत्नी के भाई के साथ होती है और वह सफल भी होता है।                               
* तृतीऐश लग्न में हो और साझेदारी की कुंडली में लग्नेश तृतीय भाव में हो मित्रता के साथ व्यापार में साझेदारी होती है  लेकिन दोनों की कुंडली में अष्टमेश की दशा नहीं होनी चाहिए अन्यथा साझेदारी टूटने का भय रहता है । दशमेश तृतीय भाव में हो और सप्तमेश ,एकादशेश , तृतीऐश की युति हो बहुत बड़े व्यापार की साझेदारी होती है । तृतीय भाव का स्वामी और  सप्तम भाव का स्वामी और दशम भाव का स्वामी 6 , 8 , 12 भाव में नहीं होना चाहिए  इन भावों में होने पर हानि होती है।      

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*** पार्टनरशिप के दृष्टिकोण से जन्म कुंडली में  तृतीय भाव मैं सूर्य चंद्र /सूर्य राहु/ चंद्र राहु /चंद्र शनि/ सूर्य शनि/ शुक्र  राहु / गुरु राहु / शनि मंगल  इन ग्रहों की युती नहीं होना चाहिए  और ना ही दृष्टि संबंध होना चाहिए  ।
***   तृतीय भाव का स्वामी वक्री या अस्त नही होना चाहिए । 
***     नवम भाव का स्वामी 6 , 8 , 12 नहीं होना चाहिए । अथवा तृतीय भाव का स्वामी तृतीय भाव से 6, 8 , 12  मे  नहीं होना चाहिए ।
व्यापार-व्यवसाय में एक अच्छे पार्टनरशिप के लिए तृतीय भाव का स्वामी सप्तम भाव का स्वामी और दशम भाव का स्वामी केंद्र व त्रिकोण में हो तो पार्टनरशिप मे अच्छी सफलता प्राप्त होती हो।             

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