गंगा दशहरा पर 10 दान से पाएं समस्त पापों से छुटकारा
पौराणिक कथनों के अनुसार एक राजा सगर से यज्ञ का आयोजन किया। वह यज्ञ बहुत महत्वपूर्ण था इसलिए उसको सँभालने एवं उसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी उन्होंने अपने पौत्र अंशुमान को दी। यह यज्ञ संपन्न न हो पाएं इसलिए इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा अपहरण कर लिया। अश्व न होने के कारण यज्ञ में विग्न पड़ रहा था। यह संकट को दूर करने के लिए अंशुमान ने साठ हजार सैनिकों की सेना के साथ अश्व की खोज शुरू कर दी परन्तु अश्व नहीं मिला। अश्व की खोज के लिए पृथ्वी को खोदा गया जिससे महर्षि कपिल के पास यज्ञ का अश्व घास चर्ता प्राप्त हुआ।
गंगा दशहरा पर हरिद्वार गंगा घाट पर कराएँ 10 महादान- पाएँ 10 पापों से मुक्ति - 1 जून 2020
महर्षि कपिल घोर तप में लीन थे परन्तु प्रजा को लगा की उन्होंने ही यज्ञ का अश्व गायब किया था। और तभी सब जोर - जोर से चोर के नारे लगाने लगे। यह सुनकर महर्षि का तप भंग हो गया और उन्होंने ने अपने नेत्र खोले जिससे निकलती तेज से समस्त प्रजा भस्म हो गयी। उन्ही लोगों के उद्धार के लिए राजा भागीरथ ने कठोर तप किया और माता गंगा को धरती पर आने का आग्रह किया। उनकी निष्ठा और परोपकार की भावना को देखते हुए माँ गंगा धरती पर अवतरित होकर धरती को पावन बना देती है।
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