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भरणी श्राद्ध क्या है ? जानें महत्व

Myjyotish Expert Updated 04 Sep 2020 05:08 PM IST
Bharnii shradh
Bharnii shradh - फोटो : Myjyotish
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हिन्दु धर्म में पुराणों का बहुत ही अधिक महत्व है। भरणी श्राद्ध और श्राद्ध पूजा के अन्य रूपों के महत्व का उल्लेख कई हिंदू पुराणों जैसे 'मतिसा पुराण', 'अग्नि पुराण' और 'गरुड़ पुराण' में किया गया है और इससे यह पता चलता है कि यह कितना महत्वपूर्ण है। 7 सितंबर 2020 को भरणी श्राद्ध है।

पितृ पक्ष के दौरान भरणी श्राद्ध एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे 'महारानी श्राद्ध' के नाम से भी जाना जाता । ऐसा इसलिए है क्योंकि यम मृत्यु के देवता और इसी कारण इसे महारानी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता हैं।

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कहा गया है कि भरणी श्राद्ध का गुण गया श्राद्ध के समान ही है। इसलिए इसकी अवहेलना बिलकुल नहीं करनी चाहिए । माना जाता है कि भरणी तपस्या के दौरान एक चतुर्थी या पंचमी तिथि को पैतृक संस्कार करना विशेष महत्व रखता है। महालया अमावस्या के बाद, पितृ श्राद्ध अनुष्ठान के दौरान यह दिन सबसे अधिक मान्य होतें है।

कई लोग अपने जीवन में कोई भी तीर्थयात्रा नहीं कर पाते, ऐसे लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें मातृ गया, पितृ गया, पुष्कर तीर्थ और बद्री केदार नाथ आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले, इसके लिए भरणी श्राद्ध करना जरूरी माना गया है।

भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष के भरणी नक्षत्र के दिन ही किया जाता है। यह उद्देश्य के लिए किया जाता है। व्यक्ति के निधन के पहले वर्ष में भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता है। इसका कारण है कि प्रथम वार्षिक श्राद्ध होने तक मृत व्यक्ति का प्रेतत्व रहता है। ऐसे में पहले वर्ष किसी भी श्राद्ध का अधिकार नहीं होता।

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प्रथम वर्ष के बाद भरणी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। वास्तव में भरणी श्राद्ध प्रतिवर्ष करने का शास्त्र संकेत देते हैं।  लेकिन एक ही बार करने वाले व्यक्ति कम से कम प्रथम वर्ष भरणी श्राद्ध न करें तो उचित होगा। प्रत्येक वर्ष भरणी श्राद्ध करना हमेशा श्रेयस्कर रहता है। इसे प्रथम महालय में न करते हुए दूसरे वर्ष से अवश्य करें।

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