भड़ली नवमी भगवान विष्णु को समर्पित होती है और भक्त इस दिन पूरे भक्ति भाव से भगवान नारायण की पूजा-अर्चना करते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को विवाह एवं आदि शुभ कार्य के लिए देवोत्थान एकादशी से पहले आखिरी दिन माना जाता है। अगर आपको कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, आदि करना हो तो इसके लिए ये दिन काफ़ी शुभ है।
इसके बाद अगले चार महीने तक आप कोई भी मांगलिक कार्य नहीं कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अगले चार महीने तक योग निद्रा के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं। इस दौरान अगर कोई भी शुभ कार्य होता है तो उसमें विष्णु जी का आशीर्वाद नहीं मिल पाता।
इसके पश्चात देवशयनी एकादशी के ठीक चार महीने बाद जब कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानाई देवोत्थान एकादशी आती है तब विष्णु भगवान अपनी निद्रा से बाहर आते हैं। इसके बाद ही सभी मंगल कार्य प्रारंभ होते हैं। इसी कारण से भड़ली नवमी की तिथि को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। तो आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी।
भड़ली नवमी की तिथि और शुभ मुहूर्त -
जैसा कि हमने पहले बताया की आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ली नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 18 जुलाई, 2021 यानी रविवार को प्रातः 2 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 12 बजकर 28 मिनट पर इसका समापन होगा। इस दिन रवि योग तथा साध्य योग बन रहा है। रवि योग की बात करें तो ये भड़ली नवमी को पूरे दिन रहेगा। वहीं दूसरी ओर अगर साध्य योग की बात करें तो ये रात्रि में 01 बजकर 57 मिनट पर पर समाप्त हो जाएगा।
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अगर आपको कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, दीक्षा लेना, नया व्यापार शुरू करना, इत्यादि कार्य करने हो तो उसके लिए ये तिथि काफ़ी शुभ मानी जाती है। इसकी महत्ता अक्षय तृतीया के बराबर मानी जाती है। अगर आपको कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करना हो और आप उसके लिए शुभ मुहूर्त की तलाश में हैं तो आप बेझिझक इस मुहूर्त का उपयोग कर सकते हैं। याद रहे इसके अगले चार महीने तक आप कोई भी शुभ कार्य करेंगे तो उसमे भगवान नारायण का आशीर्वाद नहीं होगा तो इस तिथि का अपना विशेष महत्व है।
चातुर्मास का आरम्भ -
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु अगले चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दिन से लेकर अगले चार महीने तक विष्णु जी निद्रा में ही रहते हैं और संसार का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है। ठीक चार महीने के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु वापस अपनी निद्रा से जागते हैं। इस तिथि को देवोत्थान एकादशी के नाम से संबोधित किया जाता है।
ये चार महीने चातुर्मास के नाम से जाने जाते हैं। इस दौरान सभी शुभ कार्यों पर रोक लगा जाती है। क्योंकि भगवान विष्णु इस समय निद्रा में होते हैं तो ऐसा माना जाता है कि अगर इस दौरान कोई भी शुभ कार्य हुआ तो उसने भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त नहीं हो पाता।
इसलिए देवशयनी एकादशी के पहले सभी शुभ कार्य निपटा लेने चाहिए और इसके लिए भड़ली नवमी अंतिम शुभ तिथि मानी जाती है। हालांकि आप चातुर्मास के दौरान दान पुण्य का कार्य कर सकते हैं क्योंकि इस समय संसार की देखभाल महादेव करते हैं और इन सब कार्यों से आप उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं।
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