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Home ›   Blogs Hindi ›   Bail Pola: Bail Pola festival is a special time of thanksgiving and dedication towards nature.

Bail Pola : बैल पोला पर्व प्रकृति के प्रति धन्यवाद एवं समर्पण का विशेष समय

myjyotish Updated 14 Sep 2023 09:59 AM IST
pola festival
pola festival - फोटो : my jyotish
बैल पोला त्यौहार को कई नामों से जाना जाता है. यह पर्व प्रकृति और पशुओं के प्रति स्नेह एवं समर्पण को दर्शाता है. बैल पोलाका पर्व भारत के लोक परंपराओं से जुड़ा त्यौहार है. यह पर्व एक से अधिक दिनों तक मनाया जाता है. इस दिन बैलों की पूजा की जाती है. बैल पोला त्यौहार देश भर में, खासकर कृषक समाज में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है.

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इसके अलावा दक्षिण भारत में भी इस पर्व को उत्साह के साथ मनाया है. उत्तर भारत में इसे भाद्रपद अमावस्या के रुप में पूजा जाता है. इस उत्सव में बैल की पूजा करने की परंपरा है. महाराष्ट्र में यह त्यौहार सावन माह की पिठोरी अमावस्या को पड़ता है. इस दिन किसान अपने मवेशियों की पूजा करते हैं और खेतों में उनकी मदद करने के लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं. 

बैल पोला पर्व का प्रकृति से संबंध 
वैसे तो यह उत्सव देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाता है,  भारत एक कृषि प्रधान देश है और अधिकांश किसान खेती के लिए बैलों का उपयोग करते हैं. इसलिए सभी किसान जानवरों की पूजा करते हैं ऎसे में यह दिन पशु पक्षियों के प्रति स्नेह एवं धन्यवाद को दर्शाता है. यह त्यौहार महाराष्ट्र में हर्ष एवं खुशी के साथ मनाया जाता है.

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पोला का त्योहार भाद्रपद की अमावस्या को मनाया जाता है. इसे पिठौरी अमावस्या, कुशग्रहणी, कुशोत्पाटिनी के नाम से भी जाना जाता है. यह त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाता है. इस दिन बैलों की पूजा की जाती है. इसके साथ ही बच्चों के लिए मिट्टी या लकड़ी का घोड़े बनाए जाते हैं.  

पोला त्यौहार मनाने का कारण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया तो उनका जन्म जन्माष्टमी के दिन ही हुआ था. जब यह बात कंस को पता चली तो उसने कान्हा को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा. इन्हीं राक्षसों में से एक था पोलासुर. राक्षस पोलासुर का वध कान्हा ने अपने पराक्रम से किया था. पोला सुर का वध भाद्रपद की अमावस्या को कान्हा से हुआ था. इसी कारण इस दिन को पोला कहा जाने लगा. इसी कारण से इस दिन को बाल दिवस कहा जाता है.
 
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पोला त्यौहार के एक दिन भादो अमावस्या के दिन बैलों और गायों को बांधा नहीं जाता है उन्हें मुक्त कर दिया जाता है. उन्हें सजाया संवारा जाता है. उन्हें सुंदर घंटियों वाली माला पहनाई जाती है. पशुओं की पूजा की जाती है तथा प्रकृति के प्रति नमस्कार करते हुए इस दिन को मनाया जाता है. 
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