हिन्दू पौराणिक कथाओं में सूर्य को ब्रह्मांड का केंद्र माना गया है। आदि काल से सूर्य की पूजा उपासना भी की जाती रही है इसलिए सूर्य को आदिदेव के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिदिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करने को बहुत ही पावन कार्य बताया गया है।
कथाओं में कहा गया है कि सूर्य उपासना से इंसान बलिष्ठ होता है और उसमें सूर्य जैसा ही तेज आता है। प्रमुख रूप से रविवार के दिन व्रत रखना और नियम पूर्वक सूर्य की पूजा करना अध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया है।
सूर्य पूजा की विधि
सूर्य की उपासना रविवार को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तल करने की मान्यता है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद पवित्रता के साथ निम्नलिखित मंत्र बोल करके सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें
*ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।। ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।
इसके बाद सम्भव हो तो लाल फूल और चंदन, धूप अर्पित करें। सूर्य पूजा के लिए व्रत करना आवश्यक नहीं है। आप चाहें तो सूर्योदय से सूर्यास्त तक का व्रत कर सकते हैं।
शाम को भी सूर्यास्त से पहले शुद्ध घी के दीपक से भगवान सूर्य की अराधना करें। इस प्रकार आपकी एक दिन की पूजा या व्रत पूर्ण हो जाती है।
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सूर्य पूजा के पांच लाभ
कथाओं में कहा गया है भगवान सूर्य का उपासक कठिन से कठिन कार्य में सफलता प्राप्त करता है और उसके आत्मबल में भी वृद्धि होती है। नियमित रूप से सूर्य पूजा करने से मनुष्य निडर और बलशाली बनता है।
सूर्य पूजा मनुष्य को बुद्धिमान और विद्वान बनाती है। सूर्य पूजा करने वाले की अध्यात्म क्षेत्र में रुचि बढ़ती है और उसका आचरण पवित्र एवं शुध्द होता है।
सूर्य पूजा से मनुष्य के बुरे विचारों जैसे- अहंकार, क्रोध, लोभ और कपट का नाश होता है। सुबह सुबह नहाने के बाद सूर्य को जल चढाना चाहिए।
ओम् नमः श्री आदित्याय नमः मंत्र जाप करना चाहिए।
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