श्रीकलाहस्ति मंदिर :
इस मंदिर का निर्माण स्वर्णमुखी नदी के किनारे एक पहाड़ी के सिरे को काटकर किया था जिसे कालहस्ति भी कहते है। मंदिर में कलाहस्तिश्वर भगवान की प्राण प्रतिष्ठा वायु तत्व के लिए की गई थी। श्रीकलाहस्ति नाम में श्री का तात्पर्य मकड़ी से है, कला का सर्प से एवं हस्ति का हाथी से । माना जाता है कि इन्ही तीन जानवरों ने यहां शिव जी की पूजा की थी और फिर उन्हे मुक्ति मिल गई। यह मंदिर राहूकाल पूजा के लिए खास महत्व रखता है। मंदिर परिसर में सौ स्तंभों वाला मंडप है जो मंदिर को अनोखा बनाता है।
एकाम्बरेश्वर मंदिर :
यह मंदिर तमिलनाडू के कांचीपूरम में स्थित सबसे भव्य एवं ऐतिहासिक शिव मंदिर है। भगवान शिव को यहाँ पृथ्वी तत्व के रूप में पूजा जाता है और पृथ्वी लिंगम कहा जाता है। एकाम्बरेश्वर का अर्थ है आम के पेड़ के देवता। भगवान शिव का यह लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थित है। यह वृक्ष चार वेदों का प्रतीक और चार अलग-अलग स्वाद वाले आम देता है। पल्लव वंश, पांड्या वंश, चोल वंश के राजाओं द्वारा इस हज़ार साल पुराने मंदिर का पुननिर्माण किया गया था। गर्भगृह में कुल 1008 शिव लिंगम की मूर्तियाँ है।
अरुणाचलेश्वर मंदिर :
तिरुवन्नामलाई के अरुणाचलेश्वर मंदिर का निर्माण अग्नि तत्व के लिए किया गया था। ये अन्नामलाई पहाड़ियों की तराई में स्थित है। यहां कई प्रचलित कथाएं है जिनमें से एक कथा के अनुसार शिव ने खुद को धरती और स्वर्ग को स्पर्श करते हुए अग्नि तत्व के रुप में परिवर्तित किया था।
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तिलई नटराज मंदिर :
चिदंबरम स्थित शिव का यह मंदिर महान नटराज के रुप में समर्पित है। जिसका निर्माण आकाश तत्व के रुप में किया गया है। नटराज प्रतिनिधित्व है सृजन के उल्लास का। भारतीय शास्त्रीय नृत्य की 108 मुद्राओं का चित्रण यही पर पाया जाता है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा योग विज्ञान के जनक पतंजलि ने की थी।
जंबूकेश्वर मंदिर :
इस मंदिर का निर्माण प्रकृति के जल तत्व के लिए किया गया था। कहा जाता है कि मंदिर की दिवारे बनवाने के लिए शिव जी स्वयं जाते थे। मंदिर की एक अनोखी बात है कि यहां के पुजारी दोपहर बाद पूजा के लिए महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर तैयार होते है। बताया जाता है कि यहा पार्वती माता ने तपस्या की थी और कावेरी नदी के जल से शिवलिंग का निर्माण किया था।
यह थे प्रकृति के तत्वों के प्रतिनिधित्व के लिए बने शिव के भव्य प्राचीन पंचभूत स्थल।
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