वर्तुलमभीरु सूक्ष्मं स्रिग्धं सौम्यं समं सुरभि वदनम्ï।
सिंहेभनिभं राज्यं संपूर्णं भोगिनां चेति॥
- जिसका मुख गोल हो, छोटा हो, चिकना हो, डरावना न होकर दर्शनीय हो, मुख सुगंधित हो, सिंह और हाथी के तुल्य दर्शनीय हो वह राज्य करने वाला होता है। वह सब प्रकार के भोग करता है।
जननीमुखानुरूपं मुखकमलं भवति यस्य मनुजस्य।
प्रायो धन्य: स पुमानित्युक्तमिदं समुद्रेण॥
- जिस पुरुष का मुख माता के मुख के समान हो वह पुरुष धन्य हो जाता है।
दौर्भाग्यंवतां पृथुलं पुंसां स्त्रीमुखमपत्यरहितानाम्ï।
चतुरस्रं धूर्तानामतिह्रïस्वं भवति कृपणानाम्ï॥
- जिन पुरुषों का मुख चौड़ा भांड जैसा होता है, वे अभागे होते हैं और जिन पुरुषों का मुख स्त्रियों जैसा होता है वे संतानरहित होते है। जिन पुरुषों का मुख चौकोर होता है वे दगाबाज और मायावी होते हैं और जिन पुरुषों का मुख छोटा होता है वे लोभी और कंजूस होते हैं।
भीरु मुखं पापानां निम्रं कुटिलं च पुत्रहीनानाम्ï।
दीर्घं निर्द्रव्याणां भाग्यवतां मण्डलं ज्ञेयम्ï॥
- पापियों का मुख भीरु अर्थात डरपोक होता है। जिनका मुख नीचा और टेढा होता है वे पुत्रहीन होते हैं। जिनका मुख लंबा होता है वे धनहीन होते हैं और भाग्यवानों का मुख गोल होता है।
रासभकरभप्लवगव्याघ्रमुखा: दु:खभागिन: पुरुषा:।
जिह्मïमुखा:विकृतमुखा: शुष्कमुखा: हयमुखा: नि:स्वा:॥
- ऊंट, बंदर, बघेरे जैसा मुख हो तो वह पुरुष बहुत दु:ख भोगते हैं। टेढे मुख, बुरे मुख और घोड़े का सा मुख हो तो वे पुरुष दरिद्री होते है।
बिम्बाधरो धनाढय: प्रज्ञावान्ï पाटलाधरो भवति।
प्रायो राज्यं लभते प्रवालवर्णाधरस्तु नर:॥
- कुंदरू के जैसा लाल रंग यदि होठों में दिखे तो धनवान होता है और गुलाब के से होठों वाला व्यक्ति प्रज्ञावान या बुद्धिमान होता है और मूंगे जैसे रंग के चमकदार हों तो वह राज्य प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति राज्य का लाभ प्राप्त करता है।
यस्याधरोत्तरोष्ठï व्द्यंगुलमानौ सुकोमलौ मसृणौ।
मृदुलौ समसृक्काणौ स जायते प्रायशो धनवान्ï॥
- यदि जिसके होंठ नीचे से ऊपर के नाप में दो उंगल के हों, नरम हों, चिकने हों और किनारे बराबर के हों तो बहुत धन प्राप्त करता है।
पीनोष्ठï: सुभग: स्याल्लंबोष्ठï भोगभाजनं मनुज:।
अतिविषमोष्ठï भीरुर्लघ्वोष्ठï दु:खितो भवति॥
- यदि होठ मोटे हों तो अच्छे चलन का होता है। लंबे होठ हो तो मनुष्य बहुत भोग प्राप्त करता है। बहुत छोटे-बडे होठों वाला डरपोक होता है तथा छोटे होठों वाला दुखी होता है।
रूक्षै: कृशौर्विवर्णै: प्रस्फुटितै: खंडितैरतिसथूलै:।
ओष्ठïैर्धनसुखहीना दु:खयुता: प्रायश: प्रेष्या:॥
- रूखे, पतले, बुरे रंग वाले, कटे-फटे खंडित और स्थूल होठ हों तो धन और सुख से हीन होता है और दुखी होकर दूत, हरकारा या इसी तरह के निम्न कार्य करता है।
कुन्दमुकुलोपमा: स्युर्यस्यारुणपीडिकासमा सुघना:।
दशना: स्रिग्धा: श£क्ष्णास्तीक्ष्णा दंष्टï्रा:स विज्ञाढय:॥
- जिसके दांत कंद की कलि की भांति या लाल फुंसी के समान घने चिकने, स्वच्छ और दाढ तेज हो तो वह धनवान होता है।
धनिन: खरद्विपरदा नि:स्वा भल्लूकवानररदा: स्यु:।
निंद्या: कारालविरलद्विपंक्तिशितिविषमरूक्षरदा:॥
- गधे और हाथी जैसे लंबे दांत वाले धनी होते हैं। रीछ और बंदर के से दांत वाले गरीब होते है। भयंकर और अलग-अलग दो पंक्ति वाले, काले, ऊंचे, नीचे या रूखे दांत वाले निंदित होते हैं।
द्वात्रिंशता नरपतिर्दशनैस्तैरेकविरहितैर्भोगी ।
स्यात्त्रिंशता तनुधनोऽष्टïविंशत्या सुखी पुरुष:॥
- 32 दांत वाले पुरुष राज्य प्राप्त करते हैं। 31 वाले हों तो भोगी होते हैं। 30 दांत वाला थोड़ा धन वाला होता है और 28 दांत वाले को सुख प्राप्त होता है।
दारिद्रयदुखभाजनमेकोनत्रिंशता सदा दशनै:।
उर्द्घवमधस्तात्तैरपि विहीनसंख्यैर्नरो दु:खी॥
- नौ दांत वाला सदा दरिद्री होता है और दुख भाजन होता है और ऊपर-नीचे से दांत संख्या और कम हो जाए तो बहुत दुखी होते है।
स्यातां द्विजावध: प्राक्ï द्वादशमे मासि राजदन्ताख्यौ।
शस्तावूर्ध्वावशुभौ जन्मन्येवोद्ïगतौ तद्वत्ï॥
- यदि 12 महीनों के अंदर नीचे के दो दांत निकले तो राजदंत कहलाते हैं। यदि ऊपर के दो दांत पहले निकलें तो अशुभ हैं और यदि ऊपर नीचे के दांत जन्म से निकलें तो भी अशुभ है।
सर्वे भवन्ति दशना: पूर्णे वर्षद्वये जनिप्रभृति।
आसप्तमदशमान्तं नियतं पुनरुद्ïगमं यान्ति॥
- दो वर्ष होने तक सब दांत निकल आते हैं तथा जन्म से सातवें वर्ष से दसवें वर्ष के बीच सभी दांत पुन: उत्पन्न होते हैं।
रसना रक्ता दीर्घा सूक्ष्मा मृदुला तनुसमा येषाम्ï।
मिष्टïान्नभोजिनस्ते यदि वा त्रैविद्यवक्तार:॥
- यदि जीभ लाल, बड़ी, छोटी, नरम, पतली और बराबर हो तो वे मिष्ठान्न को पसंद करते हैं और तीनों वेदों के वक्ताकार होते हैं।
सङ्कïीर्णाग्रा स्रिग्धा रक्ताम्बुजपत्रसन्निभा रसना।
न स्थूला न च पृथुला यस्य स पृथ्वीपतिर्मनुज:॥
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- यदि जीभ का अगला भाग नुकीला हो, सिकुड़ा हो, चिकना हो व लाल कमल के फूल की पंखुड़ी की भांति हो, न मोटी हो न चौड़ी हो तो मनुष्य राजा होता है।
शौचाचारविहीना: सितजिह्वï: सन्ततं भवंति नरा:।
धनहीना: शितिजिह्वï: पापोपगता: शबलजिह्वï:॥
- यदि सफेद जीभ हो तो मनुष्य शौच आचार से विहीन होते हैं। काली जीभ वाले मनुष्य धनहीन होते हैं और तरह-तरह के रंग वाली जीभ हो तो मनुष्य पापी हो जाते हैं।
सूक्ष्मा रूक्षा परुषा स्थूला पृथुला मलान्विता यस्य।
जिह्वïा पीता स पुमान्ï मूर्खो दु:खाकुल: सततम्ï॥
- जिसकी जीभ पतली, रूखी, कठोर, स्थूल, चौड़ी और गंदी पीली हो तो वह पुरुष मूर्ख होता है तथा दुखों से व्याकुल होता है।
रक्ताम्बुजतालुदरो भूमिपतिर्विक्रमी भवति मनुज:।
वित्ताढय: सिततालुर्गजततालुर्मण्डलाधीश:॥
- जिसके तलुवे का बीच रक्तकमल जैसा हो वह पुरुष पराक्रमी और राजा जैसा होता है। जिसका तलवा सफेद हो वह धनी होता है और जिसके तलवे हाथी जैसे हों वह मंडलाधीश होता है।
रूक्षं शबलं परुषं मलान्वितं न प्रशस्यते तालु।
कृष्णं कुलनाशकरं नीलं दु:खावहं पुंसाम्॥
- रूखा, चित्र-विचित्र, टेढा, गंदा तलुवा अच्छा नहीं माना गया है। काला तलुवा कुलनाश कराने वाला होता है और नीला तलुवा पुरुष को दुख देने वाला होता है।
अरुणसतालुर्गुणिनस्तीक्ष्णाग्रा घंटिका शुभा स्थूला।
लम्बा कृष्णा कठिना सूक्ष्मा चिपिटा नृणां न शुभा॥
- गुणी व्यक्तियों का तलुवा लाल होता है। मनुष्य की घंटी यदि पैनी नौक की हो तो शुभ मानी गई है, मोटी, लंबी, काली, कड़ी, छोटी और चिपटी घंटिका (गले में) अशुभ मानी गई है।
हसितमलक्षितदशनं किञ्चद्विकसितकपोलमतिमधुरम्ï।
पुंसां धीरमकम्पं प्रायेण स्यात्ï प्रधानानाम्ï ॥
- दांत यदि नहीं दिखे, कुछ विकसित कपोल, मीठा, धीरयुक्त कंपनरहित हंसना, मनुष्य को मुखिया बनाता है।
उत्कंपितांसशिर: संमीलितलोचनं निपतदश्रु।
विकृतस्वरमुद्ïधूतं मध्यानामसकृदन्ते स्यात्ï॥
- यदि कंधे और सिर कांपते हों, नेत्र मुंद जाते हों और आंसू गिरते हों, जिसका स्वर विकृत हो और अंत में भारी हो जाता हो, ऐसा हास्य करने वाला पुरुष मध्यम श्रेणी का होता है।
चतुरंगुलप्रमाणा स्थूलपुटाऽन्तस्तनुच्छिद्रा।
न च प्रपीनाऽवलिता चिरायुषां भोगिनां नासा॥
- यदि चार अंगुल प्रमाण लंबी नाक हो, मोटी हो, भीतर छोटा छिद्र हो, न बहुत मोटी न बहुत छोटी हो, ऐसी नाक वाले पुरुष बड़ी आयु और भोग वाले होते हैं।
उन्नतनास: सुभगो गजनास: स्यात्सुखी महार्थाढय:।
ऋजुनासो भोगयुतश्चिरजीवी शुष्कनास: स्यात्॥
- उन्नत नाक वाला मनुष्य अच्छे चरित्र का होता है और हाथी नाक वाला व्यक्ति सुखी और धनी होता है। सीधी नाक वाला व्यक्ति भोगी होता है और शुष्क नासिका वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है।
तिलपुष्पतुल्यनास: शुकनासो भूपतिर्मनुज:।
आढयोऽग्रवक्रनासो लघुनास: शीलधर्मपर:॥
- जिसकी नाक तिल के फूल जैसी हो तथा जिसकी नाक तोते जैसी हो या अग्रभाग में टेढी नासिका हो तो व्यक्ति धनी होता है। छोटी नाक वाला व्यक्ति शीलवान और धर्मशील होता है।
क्रमविस्तीर्णसमुन्नतनासा महीशितुर्भवति ।
द्वेधा स्थिताग्रभागातिदीर्घह्रïस्वा च नि:स्वस्य॥
- जिसकी नाक क्रम से उठी हुई हो तो वह राजा होता है और जिसकी नाक आगे से दो प्रकार उठी हुई हो बहुत लंबी या बहुत छोटी हो तो वह व्यक्ति दरिद्र होता है।
कुञ्चत्या चौर्यरतिर्नासिकया चिपिटया युवतिमृत्यु:।
छिन्नानुरूपया स्यादगम्यरमणीरत: पाप: ॥
- जिसकी नाक आगे कुंचित होती हुई हो अर्थात सिकुड़ती जाए तो वह चोरी करने वाला होता है। अगर नाक चपटी हो तो स्त्री से मृत्यु होती है। कटी सूरत की नाक वाला वेश्यारमण करता है।
विकृता मध्यविहीना स्थूलाग्रा पिच्छिला सदु:खस्य।
दक्षिणवक्रा नासा अभक्ष्यभक्षकक्रूरयोर्ज्ञेया ॥
- बुरी, बीच में कम, आगे से मोटी और चिकनी नाक वाला पुरुष दुखी होता है। दाहिनी ओर से यदि नाक टेढी हो तो अभक्ष्य को खाने वाला और क्रूर होता है।
निह्रïार्दि सानुनंद सकृत्क्षुतं भोगिनां धनवतां द्वि:।
दीर्घायुषां प्रयुक्तं सुसंहितं त्रिर्भवति पुंसाम्ï॥
- जो मनुष्य भोगी होते है, उनकी नाक से बार-बार शब्द वाली एक छींक होती है। धनवानों की दो छींक होती है और जिनकी एक साथ तीन छींक आती है वे दीर्घायु होते है।
स्खलितं लघु च नराणां क्षुतं चतुर्भवति भोगवताम्ï।
ईषदनुनादसहितं करोति कुशलं निरन्तरं पुंसाम्ï॥
- कुछ खाली और कुछ भरी परंतु हल्की छींक होती है तथा जिनके छींक में कम शब्द होता है वह मंगलकारी होती है।
नेत्र निर्मलनीलस्फटिकारुण्ययुते ईषत्स्निग्धे।
स्यातामंतर्मेचककृ शान्तशोणे दृशौ धनिन:॥
- जिसके दोनों नेत्र निर्मल्र, और नीले, स्फटिक रंग जैसे, कुछ चिकने, बीच में चमक वाले, काले, छोटे तथा जिनकी कोर लाल हो, ऐसे व्यक्ति धनवान होते है।
हरितालाभैर्नयनैर्जायन्ते चक्रवर्तिनो नियतम्।
नीलोत्पलदलतुल्यैर्विद्वांसो मानिनो मनुजा:॥
- जिन नेत्रों का रंग हरिताल जैसा हो वे मनुष्य चक्रवर्ती राजा होते हैं। नीलकमल के दल के समान जिनके नेत्र हों वे गर्व वाले और विद्वान होते हैं।
लाक्षारुणैर्नरपतिर्नयनैर्मुक्तासितै: श्रुतज्ञानी।
भवति महार्थ: पुरुषो मधुकांचनलोचनै: पिङ्गै:॥
- जिनके नेत्रों का रंग लाख जैसा लाल होता है वे राजा होते हैं और जिनके नेत्रों का रंग मोती जैसा सफेद होता है वे शास्त्र ज्ञानी होते हैं। पीले और शहद जैसा सुनहरी रंग जिनके नेत्रों का होता है वे पुरुष बहुत धनवान होते हैं।
सेनापतिर्गजाक्षश्चिरजीवी जायते सुदीर्घाक्ष:।
भोगी विस्तीर्णाक्ष: कामी पारावताक्षोऽपि॥
- हाथी के से नेत्र वाला सेनापति होता है। जिसके बहुत बड़े नेत्र हों उसकी उम्र बहुत अधिक होती है। जिसके लंबे-चौड़े नेत्र हों वह भोगी होता है और कबूतर जैसे नेत्र वाला कामी होता है।
श्यामदृशां सुभगत्वं स्निग्धदृशां भवति भूरिभोगित्वम्ï।
स्थूलदृशां धीमत्वं दीनदृशां धनविहीनत्वम्ï॥
- जिसके श्यामवर्ण नेत्र हों वह अच्छे चरित्र वाला होता है। चिकने नेत्र वाला भोगी होता है। मोटे नेत्र वाला बुद्धिमान होता है और जिसकी दीनदृष्टि हो, वह धनविहीन होता है।
नकुलाक्षमयूराक्षा जायन्ते जगति मध्यमा: पुरुषा:।
अधमा मण्डूकाक्षा: काकाक्षा धूसराक्षाश््च॥
- जिसके नेत्र नकुल या मयूर अर्थात नेवले या मोर जैसे होते हं वह मध्यम पुरुष होता है और मेंढक या कौए जैसे और धूसर रंग के नेत्र वाले अधम पुरुष होते हैं।
बहुवयसो धूम्राक्षा: समुन्नताक्षा भवन्ति तनुवयस:।
विष्टब्धवर्तुलाक्षा: पुरुषा नातिक्रामन्ति तारुण्यम्ï॥
- धुएं जैसे नेत्र वाले अधिक आयु के होते हैं। ऊंचे नेत्र वाले कम आयु के होते है और अकड़े हुए और गोल नेत्र वाले पुरुष बहुत कम उम्र पाते हैं।
ऋतु पश्यति सरलमना: पश्यंत्यूर्ध्वं सदैव पुण्याढया:।
पश्यत्यध: सपापस्तिर्यक्पश्यति नर: क्रोधी॥
- जिसका मन सीधा होता है उसकी दृष्टि सीधी होती है, जिसकी दृष्टि ऊपर होती है वह पुण्यवान होता है। जिसकी नीचे की ओर दृष्टि होती है वह पापी होता है और तिरछा देखने वाला पुरुष क्रोधी होता है।
सततमबद्धो लक्ष्म्या विघूर्णते कारणं विना दृष्टि:।
यस्य म्लाना रूक्षा स पापकर्मी पुमान्ï नियतम्ï॥
- जिसकी दृष्टि बिना कारण से घूमे उसके पास लक्ष्मी नहीं होती। जिसकी सूखी और मलिन दृष्टि हो वह मनुष्य पापकर्म करता है।
अंध: क्रूर: काण: काणादपि केकरो मनुजात्ï स्यात्ï।
काणात्केकरतोऽपि क्रूरतर: कातरो भवति॥
- अंधा और काना व्यक्ति क्रूर होता है, काने से भी अधिक दृष्टि फेरने वाला क्रूर होता है और इन सबसे अधिक क्रूर वह व्यक्ति होता है जो कि आँख चुराता है।
अहिदृष्टि: स्याद्रोगी बिडालदृष्टि: सदा पापी स्यात्ï।
दुष्टो दारुणदृष्टि: कुक्कुटदृष्टि: कलिप्रियो भवति॥
- जिसकी सांप जैसी दृष्टि हो वह रोगी होता है, जिसकी बिलाव जैसी दृष्टि हो वह सदा पापी होता है। जिसकी भयभीत करने वाली दृष्टि होती है वह दुष्ट होता है और जिसकी मुर्गे जैसी दृष्टि होती है वह लड़ाई करने वाला होता है।
अतिदुष्टा घूकाक्षा विषमाक्षा: दु:खिता: परिज्ञेया:।
हंसाक्षा धनहीना: व्याघ्राक्षा: कोपना मनुजा:॥
- उल्लू की सी आंखों वाले अतिदुष्ट होते हैं। छोटी-बड़ी आंख वाले दुखी होते हैं और व्याघ्र जैसी आंख वाले क्रोधी होते हैं।
नियतं नयनोद्वार: पुंसामत्यन्तकृष्णताराणाम्।
भूरिस्निग्धदृश: पुनरायु: स्वल्पं भवेत्प्राज्ञ:॥
- जिसकी बहुत काली आंख है, उनकी आंखें निश्चय निकाली जाती है (आजकल शल्य चिकित्सा से तात्पर्य) और बहुत चिकनी आंख वाले व्यक्ति यद्यपि विद्वान होते हैं परंतु उनकी उम्र कम होती है।
अतिपिङ्गलैर्विवर्णै भ्रान्तैर्लोचनैश्चलैरशुभ:।
अतिहीनारुणरूक्षै: सजलै: समलैर्नरा नि:स्वा:॥
- यदि भ्रांत और चलायमान नेत्रों का रंग बहुत बुरा हो तो पुरुष अशुभ होता है और बहुत छोटे, लाल और रूखा जल जो कि मैला भी हो तो ऐसे नेत्र वाले पुरुष दरिद्र होते हैं।
इह वदनमर्द्धरूपं वपुषो यदि का समनुरूपमिदम्ï।
तत्रापि वरा नासा ततोऽपि मुख्ये दृशौ पुंसाम्ï॥
- इस शरीर में आधा रूप तो मुख से होता है। उस मुख से भी नाक श्रेष्ठ है और नाक से भी पुरुषों में नेत्र प्रमुख होते हंै।
सुदृढै: कृष्णैर्नयनच्छेदस्थै: पक्ष्मभिर्घनै: सूक्ष्मै:।
सौभाग्यं चिरमायुर्लभते मनुजो धनेशत्वम्॥
- मनुष्य सुदृढ काले नेत्रों के छेदों में स्थित वरौनियों से भाग्य, आयु और धन का स्वामी बनता है।
पक्ष्मभिरधमा विरलै: पिङ्गै: स्थूलैर्विवर्णैश्च।
पक्ष्मततिविरहिता: पुनरगम्यनारीरता: पापा:॥
- विरल, पीली, मोटी, बुरे रंग की भौंहों वाले पुरुष अधम होते हैं और अनियमित आकार की भौंहों वाले पुरुष वेश्यावृत्ति में लीन होते हैं।
अनिमेष इष्टïरहित: पुरुष: स्यादेकमात्रनिमिषोऽपि॥
नियतं द्विमात्रनिमिष: परजन्माश्रित्य जीवितं तस्य॥
- थोड़ निमेष वाला और एक मात्रा में निमेष लगाने वाला पुरुष इष्टरहित होता है और दो मात्राओं के बीच में जितना समय लगे अर्थात उतने निमेष वाला पुरुष पराश्रित होता है।
धनिनस्त्रिमात्रमेषास्तथा चतुर्मात्रनिमिषवंतोऽपि।
न तु पंचमात्रनिमिषश्चिरायुषो भोगिनो धनिन:॥
- जिनके तीन मात्रा में लगने वाले समय या चार मात्रा में लगने वाले समय निमेष (पलक झपकना) धनी होते हैं, परंतु जिनका निमेष पांच मात्रा के बराबर हो वे न तो धनी होते हैं, न भोगी होते हैं और न अधिक आयु वाले होते हैं।
मन्दरमन्थानकमथ्यमानजलराशिघोषगंभीरम्ï।
बालस्य यस्य रुदितं स महीं महीयान्ï संपालयति॥
- जिस बालक का रोना समुद्र मंथन के समय उत्पन्न शब्द के समान गंभीर हो, वह पृथ्वी का राज्य पाने वाला होता है।
बाष्पाम्बुविनिर्मुक्तं स्निग्धमदीनरोदनं शस्तम्ï।
रूक्षं दीनं घर्घरमश्रु पुनदु:खदं पुंसाम्॥
- जिसके आंसू चिकने हो, ऐसा रोने वाला श्रेष्ठ होता है और जिसके रूखे व घर-घर शब्द के आंसू निकलें वह दुख पाने वाला होता है।
बालेन्दुनते वित्तं दीर्घे पृथुलोन्नते श्यामे।
नासावंशविनिर्गतदले इव भ्रूदले दिशत:॥
- बालचंद्र जैसी झुकी हुई भौंहें, बड़ी, चौड़ी, ऊंची, काली और नाक के ऊपर से भ्रू-संधि से निकली भौंहें बहुत धन देती है, परंतु ये भौंहें मिलनी नहीं चाहिए।
नृणामयुते स्निग्धे मृदुतनुरोमान्विते भ्रुवौ श्यामे।
हीने स्थूले सूक्ष्मे खरपिङ्गलरोमके न शुभे॥
- भौंहें यदि न मिलें परंतु चिकनी हों और नरम और छोटे रोमों से युक्त हों तो श्रेष्ठ कहलाती हैं और हीन, मोटी, छोटी, खुरदरी तथा पिङ्गल वर्ण के रोम वाली भौंहें शुभ नहीं मानी जातीं।
ह्रïस्वान्ता बहुदु:खानामगम्ययोषाजुषां च मध्यनता:।
स्तोकायुषामतिनता विषमा: खण्डा भ्रुवो दरिद्राणाम्ï॥
जिन पुरुषों की भौंह छोटे छोर वाली होती है, वे दुखी होते हैं। पर स्त्रीगमन करने वालों के भौंह के टुकड़े बीच में झुके होते हैं और जिनके किनारे बहुत अधिक झुके हुए हो उनकी कम उम्र होती है। जिनकी भौंह के किनारे बहुत ऊंचे उठ जांए वे दरिद्री होते हैं।
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