हिन्दू धर्म ग्रंथों में समय के कालखंड को चार युगों में बांटा गया है, जिसमे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग शामिल है। इसमें कलयुग को मानव जाति श्रापित युग कहा जाता है। लेकिन विष्णु पुराण में महर्षि वेदव्यास ने कलयुग को सबसे सर्वश्रेष्ठ युग बताया है। विष्णु पुराण के एक अध्याय 2 के अनुसार :
एक दिन महर्षि व्यास गंगा नदी में स्नान करने पहुंचे और तभी कुछ ऋषि वहां प्रकट हुए। उन्होंने देखा की महर्षि व्यास जी नदी में डुबकी लगाते हुए भगवान का ध्यान कर रहे हैं। यह देख ऋषि वहां वृक्ष के तट पर बैठ गए। कुछ समय बाद जब महर्षि व्यास नदी से निकले और कहा इंसानों में स्त्री, वर्णों में शूद्र और युगों में कलयुग सर्वश्रेष्ठ है। इसके बाद उन्होंने फिर नदी में एक डुबकी लगाई और कुछ समय बाद बाहर निकल कर शूद्र को श्रेष्ठ बताया। एक बार फिर उन्होंने डुबकी लगाई और कहा स्त्रियां साधु है और उनसे अधिक धन्य कोई नहीं है। उनकी बात जब अन्य ऋषि ने सुना तब वह आश्चर्य हुए कि वह ऐसी बातें क्यूं कर रहे हैं।
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महर्षि व्यास जब अपनी क्रिया कर के बाहर आए तो वह उन ऋषियों के पास पहुंचे। उनके बातों से हैरान उन्होंने महर्षि व्यास से कहा कि उन्होंने ऐसा क्यूं कहा। इस पर व्यास जी ने हँसते हुए जवाब दिया कि जो फल सतयुग में 10 वर्ष तपस्या, ब्रह्मचर्य और जप करने से मिलता है उसे मनुष्य द्वापर में एक माह में, त्रेता युग में एक वर्ष में मिलता है, वह कलयुग में केवल एक दिन-रात में मिल जाता है।
जो फल सतयुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञ और द्वापर में देवार्चन करने से प्राप्त होता है वह कलयुग में केवल सिर्फ भगवन कृष्ण के कीर्तन से ही प्राप्त हो जाता है। कलयुग में थोड़ी परिश्रम करने से ही फल की प्राप्ति हो जाती है। यही कारण है कि कलयुग को सबसे श्रेठ माना जाता है।
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