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कुंडली के विशेष योग एवं उनका महत्व !

Myjyotish Expert Updated 19 Jan 2021 09:23 PM IST
Astrology
Astrology - फोटो : Myjyotish
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नवजात शिशु के जन्म से ही ग्रह और नक्षत्रों की दशाएं उसके वर्तमान पर प्रभाव डालना आरम्भ कर देती हैं। ग्रहों के प्रभाव से ही उसका आगे का भविष्य निर्धारित होता है। यदि जन्म-कुंडली में किसी ग्रह की स्थिति के कारण कोई दोष या विकार उत्पन्न होता है तो वह आगे चलकर हानिकारक सिद्ध हो सकता है। 

विशिष्ट दोष निवारण पूजा इन्हीं दोषों का निवारण करने में लाभदायक सिद्ध होती हैं। कुंडली में कई प्रकार के दोष हो सकते हैं। इनका दुष्प्रभाव आपके व्यक्तिगत और वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं। 

1. काल सर्प दोष

काल सर्प दोष से ग्रस्त कुंडली के व्यक्ति जीवन में अपनी मेहनत अनुसार फल पाने में असक्षम सिद्ध हो जाते हैं। इससे दुःख और अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। व्यक्ति के मन में अशांति का निवास हो जाता है तथा सोते-जागते बुरे विचार आते हैं। कुंडली में जब दूसरे ग्रहों की स्थिति राहू और केतु के बीच विद्यमान होती है तब यह दोष उत्पन्न होता है। 

वैवाहिक जीवन पर प्रभाव - वैवाहिक जीवन पर इसका बिल्कुल प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दोनों कभी किसी भी बात को लेकर एकमत नहीं होते। जोड़े में बोलचाल बंद हो जाती है या छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई आरम्भ हो सकती है।

निवारण - हनुमाम जी पर चमेली के तेल और सिंदूर चढ़ाएं। प्रतिदिन 7 बार हनुमान चालीसा का जाप करें।

2. पितृ दोष

किसी की कुंडली में इस दोष का होना इस बात का संकेत देता है कि आपके पूर्वज आपसे या तो रुष्ट हैं या उनका अंतिम संस्कार सही विधि-विधान से नहीं हुआ है। इस दोष के प्रभाव से मानसिक का शारीरिक किसी भी प्रकार की बीमारियों से व्यक्ति ग्रस्त हो सकता है। मन की शांति भंग हो सकती है। 

आर्थिक रूप से भी व्यक्ति पर संकट आ सकता है। कुंडली का नौंवा घर पितृ का घर माना जाता है तथा यह एक महत्वपूर्ण घर है। इसमें किसी भी प्रकार से राहू और केतू का मेल हानिकारक सिद्ध हो सकता है। 

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वैवाहिक जीवन पर प्रभाव - इसके कारण विवाह में बहुत विलंब हो सकता है। संतान का सुख प्राप्त करने में परेशानी होती है। जोड़े में लड़ाइयां होती रहती हैं। 

निवारण - शाम को पीपल के पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उसको दूध-जल मिलाकर अर्पित करें। यह उपाय इस दोष के निवारण में रामबाण सिद्ध होते हैं।

3. चांडाल योग

यदि किसी की कुंडली में यह योग बनता दिख रहा है तो उसके चरित्र, शिक्षा, भविष्य में अस्थिरता बनी रहती है। व्यक्ति अपने चरित्र पर से नियंत्रण खो देता है। वह अपने से बड़ों का तिरस्कार भी कर देता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयत्नों के बाद भी सफलता प्राप्त नहीं होती। इससे कई प्रकार के रोग भी व्यक्ति को लगे रहते हैं। उदर-संबंधी रोगों से व्यक्ति अक्सर ग्रस्त रहता है। इस योग में गुरु अपना प्रभाव नहीं दिखाता जिससे यह योग उत्पन्न होता है। 

वैवाहिक जीवन पर प्रभाव - यदि यह योग कुंडली के सप्तम भाव में बनता है तो व्यक्ति को भार्या सुख नहीं मिलता है। 

निवारण - इसके लिए गायों को चारा डालना और उनकी सेवा करनी चाहिए। हनुमान-स्तुति करनी चाहिए। बरगद के पेड़ पर दूध अर्पित करें। वाणी पर काबू रखें तथा अपने व्यवहार में सामाजिकता लाएं।

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