जन्म के समय पर नवग्रह की स्थिति जानने के लिए एक चार्ट का उपयोग होता है उस चार्ट को कुंडली कहते हैं । जातक के जन्म के बाद जो ग्रह स्थिति आसमान में होती है उस स्थिति को कागज पर या किसी अन्य प्रकार से अंकित किए जाने वाले साधन से भविष्य में प्रयोग गणना के प्रति प्रयोग किए जाने हेतु जो आंकड़े सुरक्षित रखे जाते हैं वह कुंडली या जन्मपत्री कहलाती है ।
हिंदू धर्म में कुंडली की मान्यता:
हिंदू धर्म में कुंडली को बहुत महत्व दिया जाता है । बच्चे का जन्म होते ही कुंडली बनवाई जाती है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हिंदू धर्म में शुभ कार्यों में इस कुंडली को प्रथम स्थान दिया जाता है । चाहे विवाह संबंधित कार्य हो , पढ़ाई संबंधित या नौकरी से संबंधित कार्य हो कुंडली से ही सभी के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । जन्म के समय कुंडली बनवाने से भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से कुंडली द्वारा बताए गए उपायों के कारण बचा जा सकता है ।
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कुंडली का महत्व:
व्यक्ति क्या काम करेगा , उसकी शादी कहां होगी उस व्यक्ति का भाग्य कैसे खुलेगा कौन से काम से लाभ होगा और व्यक्ति को कितना मान सम्मान और इज्जत मिलेगी यह सब कुंडली पर आधारित होता है ।
कुंडली से ही पता चलता है कि शनि की साढ़े साती कब शुरू होगी कब खत्म और राहु काल कब शुरू और खत्म होगा । कुंडली के माध्यम से ही लग्न राशि और कौन सा नक्षत्र चल रहा है वह पता चलता है । व्यक्ति की कौन सी दशा और अंतर्दशा चालू हो वह भी कुंडली ही बताती है । जन्म कुंडली निर्माण काफी महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि ज्योतिष के आधार पर ही जन्मपत्री रचना होती है । जब तक यह पूर्णतया सही ना बने तब तक फल कथन में प्रमाणिकता नहीं आती है। अतः सही जन्मपत्रिका की रचना के लिए गणितीय सूत्र गणित प्रक्रिया में दक्ष होना आवश्यक है । यदि गणितीय प्रक्रिया ही गलत हुई तो फल कथन भी शुद्ध नहीं होगा। अतः ज्योतिष जो जन्मकुंडली बनाता है उसे गणित के क्षेत्र में दक्ष होना चाहिए इसी के आधार पर सही फलादेश किया जाता है
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