समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे। इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख, भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे। अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसको पाना चाहते थे। अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरो में युद्ध होने लगा।युद्ध के बिच राहु नामक असुर नें अमृत पी लि थी. फिर देवताओं ने तुरंत उसका सिर काट दिया परन्तु अमृत पीने के कारण उसका सिर जीवित रहा. एक पुरानी मान्यता के मुताबिक जब भी राहू सूर्य को निगल लेता है तब सूर्य ग्रहण लगता है।
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समुद्र मंथन के द्वारा मिले हर चिझ यहां तक कि 4 वेद भी देवताओं के बिच बाट दिए गए थे. देवताओं और असुरो के लड़ाई में कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन 4 स्थानों पर हर 12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां आकर पवित्र नदियों में स्नान करते है और पूजन करते है।
कलशस्य गुखे विष्णु: कण्ठे रूद्र: समाश्रित:
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:..
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्त द्वीप वसुन्धरा
ऋग्वेदोथ यजुर्वेदों सामवेदो अथर्वण:
अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:..
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