*वाप्यारामतड़ागकूप भवनारम्भ प्रतिष्ठे व्रतारंभोत्सर्ग
वधू प्रवेशनमहादानानि सोमष्टके । गोदानाग्रयणप्रपाप्रथम कोपाकर्म वेदव्रतं नीलोद्वाहमथातिपन्न शिशु संस्कारान् सुरस्थापनम् ।। 46 ।। दीक्षामौञ्जि विवाह मुंडनमपूर्व देवतीर्थेक्षणं सन्यासाग्नि परिग्रहौ नृपति सन्दर्शाभिषेकौ गमम् ।
चातुर्मास्य समावृती श्रवणयोर्वेधं परीक्षाम् त्यजेद् वृद्धत्वास्त शिशुत्व इज़्यसितयोर्न्यूनाधिमासे तथा ।
इसका अर्थ हिन्दी में यह है कि जब जब आकाशीय खगोल में ग्रहों के गुरु व शुक्र के अस्त, शिशुत्व व वृद्धत्व रहने के दौरान तथा अधिक मास व क्षय मास में ये सारे कार्य किसी भी हालत में ना करे । इस
श्लोक का अर्थ :-
बावड़ी , तड़ाग , बाग , कुआं , आदि के निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत , व प्रतिष्ठा , लंबे समय के लिए किए जाने वाले व्रत का आरंभ व उद्यापन , वधु प्रवेश , महादान जिसमें 16 तरह के महादान , सोमयाग, अष्टका श्राद्ध , गो दान , नए अन्न का प्रयोग , प्याऊ बनाना या लोकार्पण , पहली बार किया जाने वाला श्रावणी कर्म वेद व्रत अर्थात वैदिक महा नाम्नी व्रत , उपनिषद व्रत , आदि । सांड छोड़ना , उचित समय बीत जाने पर कालातीत में किये जाने वाले जातकर्म , नामकरण आदि संस्कार । दीक्षा ग्रहण करना , यज्ञोपवीत , विवाह , मुंडन , प्रथम बार देवस्थान या किसी तीर्थ स्थान की यात्रा , सन्यास लेना , अग्निहोत्र का व्रत लेना , पहली बार राजा से मिलना , राज्याभिषेक , प्रथम बार यात्रा , चातुर्मास आरंभ , समावर्तन , कर्ण वेध , नया प्रयोग या परीक्षा । ये सभी कार्य अति आवश्यकता अगर नहीं हो तो नहीं करना चाहिए । और संवत 2077 के सन 2021 के 18 जनवरी को गुरु का तारा अस्त हो जाएगा व 13 फरवरी 2021 को उदय होगा ।
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शुक्र का तारा 14 फरवरी 2021 को अस्त होगा जो पूरे संवत तक रहेगा इस प्रकार गुरु व शुक्र के तारे के अस्त होने व शिशुत्व व वृद्धत्व के कारण ही 2021 में किसी भी तरह से शुभ कार्य करना पूर्णतया वर्जित है । अब होगा क्या कई पंडित अलग अलग पंचांगों का आधार लेकर मुहूर्त की गली निकाल कर अपना कार्य करने की कोशिश करेंगे जो एकदम गलत होगा । अति आवश्यकता की बात कह कर कई लोग मुहूर्त करवाने की बात की आड़ लेकर या किसी अबूझ सावे की बात को लेकर शादी करवाने का कार्य करेंगे जो एकदम शास्त्र विरुद्ध होगा । क्योंकि चाहे अबूझ हो या बुझ हो तारा लगा हुआ होने के कारण कोई भी विवाह व शुभ कार्य नहीं करना चाहिए ।
क्योंकि अगर ऐसा कार्य कोई भी पंडित विद्वान करवाता है तो वह तो करवा के चला जायेगा पर उसका परिणाम की पीड़ा उस परिवार के लोगों को ही सहन करनी पड़ेगी । इसलिए सनातन धर्म की इस गलत परम्परा को करने वालों के विरुद्ध अभियान का आगाज करते हुए यह बात सबके ज्ञानार्थ के लिए लिखी गयी है पर इस बात को लिखते समय किसी भी विद्वान को नीचा दिखाने की मंशा से नहीं बल्कि गलत लोगों के द्वारा शास्त्रों का दुरुपयोग करने की बात का विरोध स्वरूप लिखी गयी है व लोगों को सही जानकारी मिले और शास्त्रों पर विश्वास बना रहे जैसे पहले था । क्षमाप्रार्थी हूँ अगर सही विद्वान को बात बुरी लगे तो ।
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