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Home ›   Blogs Hindi ›   Astrology god sargun nirgun significance

जानें निर्गुण और सगुण के माध्यम से ईश्वर को

Myjyotish Expert Updated 03 Apr 2021 06:57 PM IST
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भक्ति काल के अनुसार दो शाखा थी ।
निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा जिसमें निर्गुण भक्ति धारा का आशय निराकार ब्रह्म की उपासना करना है  ।
जिनका कोई आकार नहीं होता जिसकी भक्ति कबीर दास ने की थी
वहीं सगुण भक्ति धारा का आशय ईश्वर का आकार होना है ।
जिसकी भक्ति स्वयं मीराबाई ने की थी  ।

आज हम जानेगें ईश्वर के निराकार और साकार रूप के बारे में 

ईश्वर का आकार निराकार है या साकार है   ? 

इस प्रश्न पर दुनिया दो भागों में बंटी हुई है कुछ लोग मानते हैं ईश्वर साकार रूप है कुछ लोग मानते हैं ईश्वर निराकार रूप में है  ।
दोनों के अपने तर्क है किन्तु हिन्दू सनातन के अनुसार ईश्वर का साकार रूप है क्योंकि निराकार भगवान साकार चीजों का सृजन नहीं कर सकता है  ।
साकार ही किसी चीज का आकार गढ़ सकता है जिसे आकार का बोध नहीं वो साकार का सृजन नहीं कर सकता है  न ही वह साकार की रचना कर  सकता है । अगर  ईश्वर निराकार होता तो फिर  84 लाख योनियों को आंखों की जरूरत ही न होती । क्योंकि निराकार को देखने की आवश्यकता ही नहीं होती है । प्रकृति व ब्रह्माण्ड की हर चीज़ आकार में होती है ।  अगर हम ध्यान में निराकार का स्मरण करें तो भी हमें  ध्यान में कोई ज्योति एक साकार रूप में ही दिखाई देती है । बुद्धि हमेशा से आत्मा बहुत सूक्ष्म होती है साकार है किन्तु इन आँखों से दिखाई नहीं देती है ।  लेकिन जो साकार आंखों से देख सकते हैं उनको वही दिखाई देता है । किन्तु कुछ संसार का हिस्सा ऐसा है जो दिव्य दृष्टि से दिखाई देता है । हिन्दू धर्म में 2 विज्ञान होते हैं 1- परा विज्ञान और 2- अपरा विज्ञान । परा विज्ञान का दृष्टिकोण होता है जो इन नेत्रों से नहीं दिखाई देता है लेकिन वो चीज़ प्रकृति में होती अवश्य है । भगवान को देखने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है । क्योकिं भगवान का रूप तो पांचों तत्वों में आकाश तत्व प्रधान होता है   जिसे हम पंचतत्व के नाम से भी जानते हैं जिसमें पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु है
 इसलिए भगवान दिखाई नहीं देते हैं । वो तो कण कण में होते हैं ।  इसलिए जो योगी व ऋषि आकाश तत्व, वायु तत्व को जान लेता है वही भगवान के रूप को जान लेता है ।  और दिव्य दृष्टि योग साधना और समाधि से प्राप्त होती है । भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि से प्रभु का साकार रूप दिखाया था । इसलिए योगियों के लिए दिव्य दृष्टि वालों के लिए भगवान साकार हैं । और जिनको परा विज्ञान का अनुभव नहीं है या भगवान को वैज्ञानिक तरीके से देखने की कोशिश करते हैं उनके लिए निराकार ही है  ।
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