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जानें शुक्र का रत्न हीरा क्यों है अनमोल ?

Pandit satish sharma Updated 14 Aug 2020 11:18 AM IST
शुक्र का रत्न हीरा
शुक्र का रत्न हीरा - फोटो : Myjyotish
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84 रत्नों में सबसे मूल्यवान हीरा माना जाता है। इसकी महत्ता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि सैकड़ों फिल्में हीरे की चोरी और तस्करी पर बन चुकी है। यूरोप में युवकों द्वारा अपनी मंगेतरों को हीरे की अंगूठी पहनाने की परम्परा है, भारत में भी ऐसा ही है। उनकी मान्यता है कि जिस प्रकार हीरा कठोर रत्न है, उसी प्रकार यह दांपत्य जीवन में भी कठोरता (स्थिरता) लाता है। हीरा बहुत ही मूल्यवान रत्न है। अमेरिका के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में एक अण्डे के आकार का ऐसा हीरा भी है जिसका कोई बीमा कम्पनी बीमा करने को तैयार नहीं है।

विभिन्न भाषाओं में इसके अलग-अलग नाम हैं। हिन्दी व ऊर्दू में हीरा, कन्नड में वज्र, मराठी में हीनरा, संस्कृत में वज्रमणि, कुलिश, वज्र, इन्द्रमणि, हीरक तथा अभेद, अरबी और फारसी में अलयास, लेटिन में एडमण्टेन और अंग्रेजी में डायमण्ड कहते हैं।

जहाँ तक इसकी उत्पत्ति का प्रश्न है इसका जन्म शुद्ध कोयले से होता है। वैज्ञानिक परीक्षण से ज्ञात होता है कि कोयले (कार्बन) का प्रमुख तत्व (कार्बन-डाई-ऑक्साइड) जब घनीभूत होकर जम जाता है तो वह पारदर्शी मणिभ (क्रिस्टल) का रूप ले लेता है। वहीं कार्बन का पारदर्शी मणिभ हीरा कहलाता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा बृहत्त संहिता में हीरे तथा अन्य रत्नों के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, कांगो, इंग्लैड, जायर, वेनजुएला, तनजानिया, अफ्रीका, गायना, सीरिया, लीबिया, इण्डोनेशिया, ब्राजील आदि अनेक देशों में भी यह उपलब्ध है।

हीरा एक मूल्यवान रत्न है अत: इसके लेने से पहले इसकी शुद्धता की जाँच भी कर लेनी चाहिए। हीरे में सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि लोहे के हथोडे से इसे तोड़ा जाए तो भी यह नहीं टूटता। यदि टूट जाए तो समझ लीजिए हीरा नकली है। हाँ चोट मारने का एक विशेष तरीका भी काम में लिया जाता है जिससे इसके मणिभ (क्रिस्टल) अलग-अलग हो जाते हैं। इन्हें ताराश कर छोटे-छोटे हीरे बनाकर इसे बेच दिया जाता है। इसका अर्थ यह नहीं लेना चाहिए कि हीरा टूट गया है। धूप में हीरा रख दिया जाए तो उसमें से इन्द्रधनुष के समान किरणें निकलती दिखाई देगी। इसी प्रकार गर्म दूध में यदि हीरा डाल दिया जाए तो अपेक्षाकृत कम समय में दूध ठंडा हो जाए तो समझ लीजिए हीरा असली है।

घी के द्वारा भी इसकी पहचान की जाती है। असली पिघले हुए घी में हीरा डाल दिया जाए तथा अपेक्षाकृत कम समय में घी जम जाए तो समझ लीजिए कि हीरा असली है। हीरे में अनेक दोष भी पाए जाते हैं। इन्हें परीक्षण कर हीरा लेना चाहिए। रक्तमुखी, गड्डेदार, सुन्न, लकीरवाला, बिन्दु वाला तथा धार वाला हीरा नहीं पहनना चाहिए। जिस प्रकार सेव (एपिल) लाभ तो बहुत करती है लेकिन सडी हुई एपिल नुकसान भी कर सकती है। उसी प्रकार दोषयुक्त रत्न लाभ की अपेक्षा हानि अधिक करता है अत: हीरा ही नहीं कोई भी रत्न पहनने से पूर्व विद्वान ज्योतिषी जो भाग्य रत्नों में जानकारी रखता हो उसे दिखाकर ही खरीदना चाहिए। उसकी पूजा प्राण प्रतिष्ठा शुद्धि हो जाने से रत्नों का प्रभाव दुगुना बढ़ जाता है तथा छोटे-मोटे दोष शांत हो जाते हैं। जिस प्रकार मूर्तिकार की दुकान पर रखी मूर्ति में श्रद्धा की अपेक्षा मंदिर में रखी मूर्ति में श्रद्धा अधिक होती है उसी प्रकार दुकान पर रखे रत्न तथा बिना पूजा प्राण प्रतिष्ठा कराए रत्न की अपेक्षा प्रतिष्ठावान रत्न अधिक प्रभावशाली बन जाता है।

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विश्व के प्रसिद्ध हीरे :

1. कुलीन हीरा : इसका वजन 316.40 कैरेट है। यह इग्लैण्ड के राज मुकुट (क्राऊन) में जड़ा हुआ है।
2. जोंकर हीरा : इसका वजन 726.25 कैरेट है। यह ट्रंासवाल से मिला था। जेकोबंस जोकर द्वारा प्राप्त करने के कारण इसका नाम जोंकर पड़ गया।
3. पिट या रीजेण्ट हीरा : यह हीरा भारत की विख्यात खान गोलकुण्डा खान से निकला था। इसे मद्रास के तत्कालीन गवर्नर सर टामस पिट ने खरीदा, इसके बाद फ्रांस के धनाढ्य व्यक्ति रीगेन्ट ने खरीद लिया।
4. कोहिनूर हीरा : यह हीरा सन् 1304 में भारत की गोलकुण्डा खान से निकला था। उस समय इसका भार 785 कैरेट था। सबसे पहले यह मालवा नरेश की संपत्ति बना, इसके बाद सन् 1526में यह बाबर के अधिकार में आ गया। बाबर पुत्र हुमाँयू ने जौहरियों से इसका मूल्यांकन करने के निर्देश दिए। उस समय इसका मूल्यांकन इस प्रकार किया गया - आज दुनियाभर का एक दिन में जो खाने-पीने का खर्च निकलता है, उसकी आधी रकम इसकी कीमत होनी चाहिए। अनेक स्थानों पर भ्रमण करने के पश्चात् सन् 1805 में यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्राप्त हो गया। इसके पीछे लोगों की धारण यह भी रही है कि यह हीरा जिस देश में भी रहा, उसकी दुर्दशा के दिन शुरु हो गए। शायद इसी कारण सन् 1852 में इसके तीन टुकड़े कर दिए गए। एक ब्रिटिश सम्राट के मुकुट मेें, दूसरा महारानी के मुकुट मेें तथा तीसरा इंग्लैण्ड के शाही संग्रहालय में सुशोभित कर सुरक्षित रखा गया है। इसके अतिरिक्त भी विश्व प्रसिद्ध हीरों में ओर ओरलोप (हार्लफ), वारगास, शाह, होप, मुगले आजम, अकबर शाह, टिफनी, एम्पीरियल, शांति, सतारा आदि प्रमुख है।

हीरे का प्रभाव :

हजारों वर्षों से भारत के सुप्रसिद्ध वैद्य मूल्यवान रत्नों को जलाकर भस्म बनाकर अनेक बीमारियों के उपचार करते आ रहे हैं। रत्नों में रोग को दूर करने की अद्भुत शक्ति होती है। इसकी भस्म से क्षय रोग भगन्दर, वीर्य दोष, मधुमेह, सूजन आदि समाप्त हो जाते हैं। आयु की वृद्धि के लिए हीरा रामबाण औषधि है। रसरत्न समुच्चय के अनुसार यदि रोगी अंतिम सांसे ले रहा हो ऐसी अवस्था में हीरे की भस्म की एक खुराक दे दी जाए तो शीघ्रता से चैतन्यता आ जाती है। प्राणों की रक्षा हो जाती है। नपुंसकता को यह जड़ से समाप्त कर देता है। हीरे की पिष्टि कभी नहीं खानी चाहिए। भूत-प्रेत की बाधा, विष की
  • आशंका को यह दूर भगा देता है। काम-क्रीडा में जो व्यक्ति शीतलता महसूस करते हों उन्हें हीरा पहनने से वांछित लाभ प्राप्त होता है।
  • स्त्रियों को हीरा वर्जित : शुक्राचार्य के कथनानुसार हीरा स्त्रियों को धारण नहीं करना चाहिए। कहा गया है - न धारयेत पुत्र कामा नारी वज्रं कदाचन्।
हीरा कौन पहने : रत्न हमेशा लग्र के अनुसार ज्योतिषी की राय से पहनना चाहिए। इसका कारण यह है कि कुल राशियां 12 ही है जिसमें संपूर्ण विश्व समाया हुआ है जबकि जन्मपत्री व्यक्ति का स्वयं का जन्मकालीन नक्शा है यदि वृष एवं तुला राशि के व्यकित इसे पहनना चाहें तो पहले किसी हस्तरेखा विशेषज्ञ को हाथ दिखा लें। हस्त संजीवन पौराणिक ग्रंथ में लिखा है मनुष्य का हाथ ऐसी जन्मपत्रिका है जो
  • कभी नष्ट होती इसमें गणितीय त्रुटि की संभावना भी नहीं है। यह ब्रह्माजी द्वारा लिखी गई ऐसी पुस्तक है जो जीवनभर मनुष्य का मार्गदर्शन करती है।
  • जिस व्यक्ति का वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर एवं कुंभ लग्र हो वे हीरा धारण कर सकते हैं लेकिन जिनका मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु एवं मीन लग्र है वे भूलकर भी यह रत्न नहीं पहने। इंग्लैण्ड की स्वर्गीया डायना द्वारा अशुभ समय में पहना गया 65 लाख का हीरा उनकी मृत्यु का कारण बन गया। जिनके पास जन्मपत्रिका नहीं है लेकिन वे 6, 15 या 24 तारीख को जन्मे हैं वे भी ज्योतिषी की राय से हीरा पहन सकते हैं।
हीरा कब पहनें :
भरणी, पूर्वा फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र हो, वृष या तुला राशि पर शुक्र हो, शुक्रवार का दिन हो उस दिन शुभ मुहूर्त में रत्न की शुद्धि करवाकर रत्न पहनना चाहिए।

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