कार्तिक पूर्णिमा पर कराएं सामूहिक सत्यनारायण कथा, हवन एवं ब्राह्मण भोज, सभी कष्टों से मिलेगी मुक्ति : 30 नवंबर 2020
ज्योतिष में गुरु ग्रह का स्थान:- फलित ग्रंथों के अनुसार स्थूलकाय, विशाल उदर, भूरे केश तथा भूरी आँखों वाले बृहस्पति का पीतवर्ण है जो इनके बौद्धिक प्रभाव का प्रतीक है। वेद मंत्रों में इन्हें सर्वाधिक शुभग्रह एवं आत्मा की शक्ति माना गया है। ये प्राणियों में अज्ञान के अंधकार को पूर्णरूप से दूर करने की क्षमता रखते हैं। ये अपने आराधकों को वांछितफल प्रदान कर उसे संपत्ति तथा बुद्धि से संपन्न करके सन्मार्ग पर चलने की ओर प्रेरित करते हैं। महादेव ने इन्हें साधु वृत्ति, देवत्व, आध्यात्मिकता एवं ब्रह्मविद्या से सम्बद्ध करके ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान दिया है। जन्मकुंडली में गुरु दूसरे, पांचवें, नवें तथा ग्यारहवें भाव का कारक होते हैं। इनका प्रिय स्थान मंदिर, शिक्षा संस्थान तथा धार्मिक सत्संग का स्थान है....!!
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