वास्तु शास्त्र में पूजा-पाठ की जगह को लेकर प्राय: सवाल पूछे जाते है। मेरे पास बहुत सारे जो पत्र आए हैं, उनमें अनिश्चय और भ्रम की स्थिति अधिक है। मैं व्यक्तिगत रूप से तो नहीं परंतु इस लेख के माध्यम से कुछ शंकाओं का समाधान कर रहा हूँ।
ईश्वर का स्थान
ईशान कोण ईश्वर का स्थान है। ईशान कोण से तात्पर्य निर्मित भवन का ईशान न होकर पूरे भूखंड का ईशान होता है। अत: यदि आप केवल दक्षिण भाग में निर्माण कार्य करते हैं तो उत्तर या पूर्वी में लॉन होने की स्थिति में ईश्वर के लिए जगह लॉन पार करके कोण में बनानी चाहिए। वहाँ भारी स्थान न बनाकर छोटा स्थान बनाना चाहिए।
किस देवता की स्थापना करें?
ईशान कोण में आपके जो भी ईष्ट देवता है, उनकी स्थापना करें। यद्यपि यह वैदिक पद्धति है फिर भी सभी प्रार्थनाएं ईश्वर को पहुंचती है इसलिए जिस धर्म के जो आराध्य हो, उनसे संबंधित जातक अपने इष्टदेव को ईशानकोण में स्थापित करें यह उचित है।
क्या अन्य दिशाओं में भी देवताओं की जगह है?
उत्तर में कुबेर या लक्ष्मी, दक्षिण में यम अर्थात पितर, सपूत या वे व्यक्ति जो यमलोक को प्रस्थान कर गए हैं। उनकी स्थापना की जा सकती है। वरुण की स्थापना पश्चिम में कर सकते हैं। दक्षिण में ही दीपक का स्थान बताया गया है। बीच में ब्रह्मï स्थान में किसी देवता की स्थापना न करें और न पक्का निर्माण करें। फिर भी तुलसी जी का गमला रखा जा सकता है।
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क्या पश्चिम में वरुण की स्थापना से तात्पर्य जलाशय से है?
नहीं। जलाशय सर्वश्रेष्ठ उत्तर दिशा व ईशान दिशा में माने गए हैं। पश्चिम में भी जलाशय प्रशस्त माना गया है, परन्तु कालांतर में इससे चरित्र दोष आने की संभावना बन जाती है। यह दोष घर में अधिक आता है और कारखानों में तीव्रता से फल देता है। कारखानों में चरित्र दोष का अर्थ चोरी-चकौरी, बेईमानी इत्यादि से है जो कि बहुत सामान्य हो गया है। परन्तु यह सत्य है कि पश्चिम दिशा का जलाशय बहुत धन प्रदायक होता है। प्राय: पश्चिमी समुद्री तटों पर बसे नगर अधिक सम्पन्न होते देखे गए है। परन्तु उन नगरों में चरित्र दोष भी बहुत अधिक पाया गया है।
वरुण का चित्र या मूर्ति भी लगाई जा सकती है। आजकल इन सबके स्थानों पर ओवरहैड टैंक पश्चिम मेें बनवा दिया जाता है। यह वरुण स्थापना के समान ही है।
क्या मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करनी चाहिए?
नहीं। घरों में न तो बड़े आकार की मूर्ति लगानी चाहिए और न ही उनकी प्राण-प्रतिष्ठा करनी चाहिए। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद भूमि को शयन, उत्थापन, भोजन, स्नान इत्यादि विधि-विधान से करने आवश्यक है। घरों में प्राय: नियम पालन नहीं हो पाता, अत: परिवार का अनिष्ट होता है। फिर भी बड़े घराने जहां पूजा-पाठ की नियमित व्यवस्था संभव है ऐसा करा सकते हैं।
शिवजी की स्थापना घर में नहीं करनी चाहिए। ये ध्वंस व संहार के स्वामी है और यदि कभी आवश्यकता पड़े तो मूर्ति को निष्प्राण करके अन्यत्र कहीं नहीं ले जाया जा सकता। बाकी सभी मूर्तियों को निष्प्राण करके अन्यत्र स्थापित किया जा सकता है।
हनुमान जी को कहां स्थापित करें?
वायव्य कोण में पवनसुत को ले जा सकते हैं।
क्या रसोई में पानी का स्थान उचित है?
मारवाड़ी परिवारों में लड़की या दामाद को रसोई में ले जाकर परेंडा (पानी का स्थान) या अन्य पूजा की जगह में ले जाकर ढोक दिलाई जाती है। ऐसा रसोई घर की पवित्रता के कारण भी कर लिया जाता है कि देवता वहां ठीक रहें। वास्तव में अग्निकोण में अग्निहोत्र या यज्ञ, हवन इत्यादि या भोग लगाने की प्रक्रिया ही शास्त्र सम्मत है। अग्निकोण में अन्य अग्निकर्म भी किए जा सकते हैं।यह भी पढ़े :-
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