सौभग्य मंत्र
चिन्ता, फिक्र, तनाव, डिप्रेशन, फ्रस्ट्रेशन आजकल के नौजवानों के जीवन का हिस्सा बन गया है। पिछले कुछ वर्षां से मैं महसूस कर रही हँ कि जितने भी युवक युवतियाँ मुझसे परामर्श लेने या भविष्य जानने आते हैं, वह सभी तनाव और इनसिक्योरिटी से ग्रस्त हैं।
कोई अपनी पत्नी से परेशान है तो कोई बाँस से। कोई अपना घर नहीं बना पा रहा, तो किसी को इस बात की चिन्ता है कि उम्र निकली जा रही है और विवाह नहीं हो रहा। धन, जाब, तरक्की सम्बन्धी चिन्ताएं तो सभी को हैं।
क्या आप भी तनाव में जी रहे हैं?
आखिर इस तनाव, चिन्ता का कारण क्या है। आज की युवा पीढ़ी को जीवन से अधिक आशाऐं हैं। किसी भी बात की आशा करना और उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना अच्छी बात है। परन्तु जब वह आशा पूरी नहीं होती तो निराशा बन जाती है। और समय गुजरने पर चिन्ता का रूप ले लेती है। हम अप्रसन्न रहने लगते है और अपने आपको दुर्भाग्यशाली समझने लगते हैं।
दुर्भाग्य और सौभाग्य, यह दोनो मन की स्थितियाँ हं। यदि आप ध्यान से सोचं तो आपको स्मरण होगा कि अपने जीवन की किसी महत्वपूर्ण घटना से पूर्व आपका मन कई दिनों तक बेचैन रहा। परीक्षा के परिणाम से पूर्व, इन्टरव्यू के पूर्व, किसी पद को पाने से पूर्व, आशंका हर समय घेरे रहती कि कहीं आप असफल तो नहीं हो जायेंगे। किसी अनहोनी की चिन्ता सदा सताती रहती।
हमारी अधिकांश चिन्ताएँ हमारी किसी कल्पना के कारण होती हैं। हम अपना जीवन बहुत सी ऐसी आकांक्षाओं में व्यतीत करते हैं जो वास्तव में कभी नहीं होती। मेरा एक परिचित व्यक्ति सदा संकट और कष्ट की आशंकाओं से ग्रसित रहता है। वह हमेशा यही सोचते हैं कि वह दुर्भाग्यशाली है और उसकी इस सोच का परिणाम यह होता कि उसके कार्य बिगड़ जाते हैं चाहे वह कितना भी परिश्रम क्यों न कर लें।
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आखिर क्यों?
क्योकि ‘‘ला आफ अट्रेक्शन‘‘ ‘‘आकर्षण का सिद्धांत‘‘ कहता है कि हमें सदा हमारी मनोदसा के अनुकूल ही परिणाम मिलता है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही पाता है। इसका कारण है कि हम जो ‘‘यूनीवर्स‘‘ से माँगते है हमें वही मिलता है।
‘‘आकर्षण के सिद्धांत‘‘ से तात्पर्य है कि जो हमारे विचार की तरंगे ‘यूनीवर्स‘ से जाती हैं वैसी ही तरंगे हमारे पास वापिस आती हैं। हम उन्ही बातों को और वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करते है जो हमारे मन में होती हं, जिनके बारे में हम ज्यादा सोचतें हैं। नकारात्मक विचार रख कर हम सकारात्मक उपलब्धि नहीं पा सकते।
अब प्रश्न उठता है कि हम जीवन में आनंद और सौभग्य कैसे लायें?
हम सभी के पास अनंत शक्ति है परन्तु हम अपनी उर्जा का प्रयोग करते हैं तनाव में, फिक्र में। एक महा पुरूष से एक बार किसी ने पूछा आप अपने मानसिक आनंद को किस प्रकार स्थिर रखते हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि मैं कभी भी अपने मन को दुर्भाग्य की आशंका से ग्रस्त नहीं होने देता।
जरूरत है विचार बदलने की क्यों कि हमारे विचार मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। सकारात्मक सोच सौभाग्य बनाती है और नकारात्मक सोच दुर्भाग्य। हमें अपना जीवन कैसा चाहिये? उत्तर है ‘‘सौभाग्यशाली‘‘ तो अपनी अनंत शक्ति का उपयोग कीजिऐ, जीवन में प्रेरणा और आनंद की अनुभूति कीजिए और ‘‘युनिवर्स‘‘ को अपनी ओर आकर्षित कीजिए, खुशी, तरक्की और सफलता मिले।
सुबह उठ कर सबसे पहले सोचिय, आज आप अपना दिन कैसा चाहेंगे? उत्तर है सफल। सोचिये आज मेरा इन्टरव्यू बहुत अच्छा होगा, बाॅस मेरी तारीफ करेगा, मैं परीक्षा में सफल हॅूगा। आज मेरा परफोरमेन्स सबसे अच्छा होगा। विश्वास कीजिये आपकी सकारात्मक सोच आप का दिन उपलब्धियों से भर देगी और आपके जीवन में सौभाग्य की किरणं फूट पडंगी।
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