गृहस्थ जीवन के सुख के लिए इस व्रत की महिमा बहुत ही विशेष रही है.यह व्रत चतुर्मास के चार महीनों के दौरान प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस व्रत को करने से पति-पत्नी का साथ जीवनभर बना रहता है और रिश्ता मजबूत होता है. प्रेम और दांपत्य जीवन के सुख का विशेष लाभ प्रदान करता है यह व्रत.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
यह व्रत सौभाग्य को प्रदान करता है. अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र के लिए तथा उसके साथ सुख पूर्ण जीवन के लिए इस व्रत को किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी के रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए अशून्य शयन द्वितीया का यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण है.
अशून्य शयन व्रत पूजन
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अशून्य शयन व्रत द्वितीया तिथि को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है. इस व्रत में लक्ष्मी और श्री हरि विष्णु जी की पूजा करने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु शयन करते हैं और इस अशून्य शयन व्रत के माध्यम से शयन उत्सव मनाया जाता है.
अशून्य शयन व्रत में शाम को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अक्षत, दही और फल से अर्घ्य दिया जाता है और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. फिर अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं, उन्हें कुछ उपहार तथा दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए. ऐसा करने से आपके वैवाहिक जीवन में प्रेम और मधुरता बनी रहेगी.
मात्र रु99/- में पाएं देश के जानें - माने ज्योतिषियों से अपनी समस्त परेशानियों
अशून्य शयन व्रत का महत्व
अगर व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाना चाहता है तो इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद एक कटोरी में थोड़ा सा पीला चंदन एवं केसर लेकर मां लक्ष्मी और विष्णु जी को तिलक करना चाहिए. फिर इस लेप से अपने और अपने जीवनसाथी के माथे पर भी तिलक लगाना चाजिए ऐसा करने से आपका वैवाहिक जीवन मजबूत रहेगा. अशून्य शयन व्रत के दौरान भगवान शिव एवं माता पार्वती का पूजन भी करना चाहिए ऎसा करने से दांपत्य जीवन में शुभता बनी रहती है.