अन्नपूर्णा जयंती का पर्व देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है. देवी अन्नपूर्णा को भोजन प्रदान करने वाली देवी के रुप में पूजा जाता है. माता पार्वती को अन्नपूर्णा नाम के रुप में पूजन करने का विधान रहा है. यह दिन पोषण की देवी देवी अन्नपूर्णा की जयंती के रूप में मनाया जाता है. देवी अन्नपूर्णा को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है. अन्नपूर्णा जयंती पारंपरिक रुप से मार्गशीर्ष माह की 'पूर्णिमा' तिथि के दिन मनाई जाती है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
इस दिन भक्त पूरी भक्ति और समर्पण के साथ देवी अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं. पूजा की रस्में मुख्य रूप से संपन्न होती हैं. अन्नपूर्णा जयंती देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है. पश्चिम बंगाल राज्य सहित भारत के पूर्वी क्षेत्रों में, अन्नपूर्णा जयंती 'चैत्र' के हिंदू महीने में मनाई जाती है और अधिकांश दक्षिण भारतीय मंदिरों में, देवी अन्नपूर्णा की पूजा दुर्गा नवरात्रि के शुभ त्योहार की चतुर्थी तिथि के दिन पर मनाई जाती है. इस दिन वाराणसी, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में देवी अन्नपूर्णा मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं.
अन्नपूर्णा जयंती अनुष्ठान:
अन्नपूर्णा जयंती के अवसर पर भक्त पूजा अनुष्ठान करते हैं. एक छोटा मंडप बनाया जाता है और पूजा स्थल पर देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है.
अन्नपूर्णा जयंती के दिन, देवी की पूजा 'षोडशोपचार' से की जाती है. भक्त देवी अन्नपूर्णा जी का अन्नभिषेक करते हैं.
देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु अन्नपूर्णा जयंती पर व्रत-उपवास रखा जाता है. इस दिन भर कुछ भी नहीं खाते-पीते हैं तथा रात में मां अन्नपूर्णा की पूजा कर व्रत संपन्न होता है.
इस दिन अन्नपूर्णा देवी अष्टकम का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है.
अन्नपूर्णा जयंती शुभ समय
पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर, 2021 सुबह 7:24 बजे शुरू होगी
पूर्णिमा तिथि समाप्त दिसंबर 19, 2021 10:05 पूर्वाह्न
अन्नपूर्णा जयंती का महत्व
अन्नपूर्णा जयंती हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. यह देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है, जो सभी प्राणियों की क्षुद्धा को शांत करने वाली हैं ओर समस्त जगत का पोषण करती हैं. हिंदी में 'अन्न' शब्द 'भोजन' का प्रतीक है जबकि 'पूर्ण' का अर्थ है 'संपूर्ण' हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, जब पृथ्वी से भोजन खत्म होने लगा, तो भगवान ब्रह्मा और विष्णु सहित सभी मनुष्यों ने भगवान शिव से प्रार्थना की देवी पार्वती तब मार्गशीर्ष महीने की 'पूर्णिमा' पर देवी अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट हुईं और पृथ्वी पर भोजन की पूर्ति करती हैं तभी से इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है.