सर्वपितृ अमावस्या को गया में अर्पित करें अपने समस्त पितरों को तर्पण, होंगे सभी पूर्वज एक साथ प्रसन्न -6 अक्टूबर 2021
इस व्रत में सभी माताएं अपनी संतान की सुरक्षा हेतु निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में सही माता की पूजा की जाती है। अष्टमी पर माताएं चांदी की माला भी पहनती हैं जिसमें हर साल दो चांदी के मोती जोड़ लेती हैं। अहोई अष्टमी व्रत में बहुत नियमों का पालन भी किया जाता है और इस व्रत में जो महिला उपवास रहती है,वह सब्जी चाकू से तक नहीं काट सकती।
पूजा करने की विधि
हमारे घर में जहां पर पूजा स्थल है वहां पर अहोई माता की तस्वीर लगाएं। एक थाली लेकर उसमें रोली,चावल और कटोरी में दूध ले ले। तत्पश्चात पूजन की प्रक्रिया शुरू करें। एक कलश में जल लेकर सभी माताएं अहोई अष्टमी कथा पढ़ना प्रारंभ करें। अहोई माता को मिठाई का भोग लगाएं इसके बाद रात्रि में तारे को अघ्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सफल जीवन की प्रार्थना करें। पूजा करने के बाद माताएं अन्य ग्रहण करती हैं और इस ग्रुप में अपनी से बड़ी बुजुर्ग महिला को उपहार अथवा दान देती हैं।
अष्टमी का व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के व्रत के 3 दिन बाद रखा जाता है। करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है उसी तरह अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और एक सुखी जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन सभी महिलाएं निर्जला व्रत रखकर संतान की सुख शांति समृद्धि के लिए पूजा करती हूं। अहोई माता प्रसन्न होने से वह अपने पुत्रों की तरह रक्षा करती हैं और संतान का सुख का आशीर्वाद देती हैं। हिंदू धर्म में इसकी काफी मान्यता है।
यह व्रत करने से संतान के जीवन में सुख का आगमन शुरू हो जाता है। संतान के जीवन में आने वाली समस्याएं दूर हो जाती हैं। माता रानी अति प्रसन्न होकर आपके ऊपर श्रद्धा करती हैं तो संतान की सुरक्षा एवं हर क्षेत्र में संतान का लाभ होता है। इनके आशीर्वाद से कई सालों से परेशान माताएं जिन्हें संतान की प्राप्ति नहीं होती उन्हें जल्द ही संतान का सुख देखने को मिल जाता है।
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