- अधिक मास के समय भगवान की पूरे मन से आराधना करना बहुत ही शुभ मना जाता है क्योंकि अधिक मास धर्म और कर्म के लिए माना जाता है |
- अधिक मास में पुरुषोत्तम भगवान की विधिविधान से पूजा करनी चाहिए | ऐसा करने से विष्णु भगवान की कृपा आप पर बनी रहती है |
- अधिक मास में सत्यनारायण का पाठ जरूर करना चाहिए |
- अधिक मास में धर्म और कर्म के साथ - साथ व्रत रखने से अधिकतम लाभ प्राप्त होता है |
- पूरा महिना दीपदान जरूर करें |
- अधिक मास में अपनी श्रद्धा अनुसार दान दक्षिण दे | ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक मास में दान करने से बहुत पुण्य मिलता है |
- अधिक मास में श्रीमद्भागवत गीता में पुरुषोत्तम मास का महामात्य, श्रीराम कथा वाचन, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ का वाचन और गीता के पुरुषोत्तम नाम के 14 वें अध्याय का नित्य अर्थ सहित पाठ करना चाहिए ।
- अधिक मास में गेहूं ,चावल, तिल , ककड़ी ,कटहल आदि जैसे छीजे ग्रहण करनी चाहिए जो सेहत के लिए अच्छी हो |
- अधिक मास में विशेष कर रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जल व आदि, गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं।
- अधिक मास में विवाह जैसा शुभ कार्य वर्जित होते है | अगर इस समय शुभ कार्य किए जाए तो रिश्तों में कभी भी सुख की प्राप्ति नहीं होती और पति पत्नी के बीच तनाव रहता है |
- मांस ,शहद ,चावल का मंद लहसुन और नशीले पदार्थ का सेवन बिल्कुल वर्जित होता है |
- अधिक मास में मुंडन नहीं करना चाहिए |
- अधिक मास में नए वस्त्र , आभूषण और नए घर की खरीदारी कभी नहीं करनी चाहिए |
- कुआं , बोरिंग, तालाब का खनन आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए |
- अधिक मास में नए व्यापार का प्रारम्भ नहीं करना चाहिए | मलमास में नया काम शुरू करना यानि की नई परेशानियों का आगमन होना |
- नामकरण , गृह प्रवेश और तिलक जैसे कार्य अधिक मास के दौरान नहीं करने चाहिए |
- अधिक मास के दौरान क्रोध, असत्य और अपशब्द का भी परागोंग नहीं करना चाहिए |
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