आचार्य कहते हैं हमें कभी भी दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए। इससे उनसे ज़्यादा हमारा अपना नुकसान होता है। किसी के लिए बुरा सोचने या बोलने से हमारे विचार और ज़ुबान दूषित होते हैं। इसके साथ ही हमारा अपना समय भी नष्ट होता है। बेहतर होगा अगर ये समय व्यक्ति अपनी कमियां देखने में और उनपर काम करने में बिताए।
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