खास बातें
Navratri Kanya Pujan: कन्या पूजन अष्टमी या नवमी का दिन बहुत ही शुभ होता है. इस समय पर माता का पूजन कन्या पूजन के साथ संपन्न होता है. हिंदू धर्म में नवरात्रि के हर दिन का समय न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि बहुत पवित्र भी माना जाता है. इसमें अष्टमी नवमी का पूजन दुर्गा उपासना विशेष दिन होता है.Ashtami Navami Navratri Shubh Muhurat इस दिन को हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह बहुत ही महत्वपूर्ण संयोग के रुप में देखा जाता है. इस दिन मां भगवती की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन को हिंदू धर्म में एक विशेष दिन के रूप में मनाया जाता है. इस दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
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चैत्र नवरात्रि को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि इस दिन दुर्गाष्टमी के साथ-साथ मासिक अष्टमी भी होती है. जो लोग सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. इसी के साथ व्रत की संपूर्णता के लिए भी इन दो दिनों को महत्वपूर्ण माना गया है. लोग अष्टमी से पहले 8 दिनों का व्रत रखते हैं और आठवें दिन यह त्योहार मनाते हैं, यह बहुत शुभ दिन होता है तो कुछ नवमी तक व्रत को करते हैं. इस दिन पूजा-पाठ, नया वाहन खरीदना, मुंडन कराना आदि शुभ कार्य किए जाते हैं.
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अष्टमी नवमी पूजा 2024 मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के दौरान अलग-अलग दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. इन नौ दिनों में अष्टमी और नवमी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. यह अष्टमी और नवमी तिथियां विशेष होती हैं. शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को सभी प्रकार की परेशानियों और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. इस साल अष्टमी और नवमी के दिन पूजा समय :-
चैत्र नवरात्रि अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अप्रैल को दोपहर 12:11 बजे शुरू होगी.चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 01:23 बजे समाप्त होगी. ऐसे में नवरात्रि की अष्टमी तिथि का व्रत 16 अप्रैल, मंगलवार को रखा जाएगा.
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चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि शुभ मुहूर्त
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 01:23 बजे शुरू हो रही है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का समापन 17 अप्रैल को दोपहर 03:14 बजे होगा. ऐसे में नवमी 17 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी.
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शिव कृत दुर्गा स्तोत्र
मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥
विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।
ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥
त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।
त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥
मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृतिः स्वयम् ।
तयोः परं ब्रह्म परं त्वं विभर्षि सनातनि ॥
वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा ।
वैकुण्ठे च महालक्ष्मीः सर्वसम्पत्स्वरूपिणी ॥
मर्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिनः ।
स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले ॥
नागादिलक्ष्मीः पाताले गृहेषु गृहदेवता ।
सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी ॥
रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती ।
प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मनः ॥
गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि ।
गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने ॥
श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी ।
शतशृङ्गाधिदेवी त्वं नाम्ना चित्रावलीति च ॥
दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा ।
देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा ॥
त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती ।
त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषितः ॥
स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम् ।
वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कररूपिणी ॥
वह्नौ च दाहिकाशक्तिर्जले शैत्यस्वरूपिणी ।
सूर्ये तेज: स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम् ॥
गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी ।
शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्गे च निश्चितम् ॥
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका ।
महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी ॥
क्षुत्त्वं दया तवं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी ।
तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम् ॥
शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्तिः कान्तिस्त्वं कीर्तिरेवच ।
लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्तिस्वरूपिणी ॥
सर्वशक्तिस्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी ।
वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन ॥
सहस्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्तः सुरेश्वरि ।
वेदा न शक्ताः को विद्वान न च शक्ता सरस्वती ॥
स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु सनातनः ।
किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि ॥
॥ कृपां कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु ॥